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आतंकवाद के रास्ते पर कानून का कार्पेट; बिंदास बोल मे सुप्रीम कोर्ट की भूमिका पर उठे गंभीर सवाल.. राष्ट्रपति शासन हटाना साबित होगा इतिहास की अक्षम्य भूल

पहलगम मे हिंदुओं के नरसंहार पर सुप्रीम कोर्ट कितना जिम्मेदार है, इस पर बिंदास बोल मे हुआ मंथन

Rahul Panday
  • Apr 25 2025 10:45PM

पहलगाम आतंकी हमले के बाद देश में एक बड़ा मंथन चल रहा है।  कोई पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहरा रहा तो कहीं स्थानीय आतंकवाद समर्थकों की भी मिलीभगत सामने आई है। इन तमाम मंथनों के बीच एक बड़ा नाम छूट रहा था। वो नाम जो खुद में ही स्वयभू है। जिसके खिलाफ बोलने का तो दूर, देखने का भी साहस भूत, वर्तमान और शायद भविष्य में बहुत कम लोगों में हो पाएगा। बात चल रही है उन मीलॉर्डो की जिन्होंने कश्मीर में राष्ट्रपति शासन हटा कर वहाँ चुनाव करवाने की जल्दबाजी दिखाई। देखें पूरा शो-

ऐसे में इस मुद्दे पर गलत सही पर अभिव्यक्ति की आज़ादी के तहत चर्चा का अधिकार हमें था। शुक्रवार (25 अप्रैल 2025) को बिंदास बोल के माध्यम से कई वरिष्ठ वकीलों और विदेश में रहने वाले हिन्दुओं की मौजूदगी में इस मुद्दे पर गहन चिंतन हुआ।  इसी चिंतन में यह निकल कर आया कि कश्मीर में जो कुक्छ भी गलत हो रहा है उस से सुप्रीम कोर्ट के वो जज मुंह नहीं फेर सकते जिनके आदेश पर हुए चुनाव के बाद आदतन हिन्दू विरोधी अब्दुल्ला परिवार की सरकार सत्ता में आई।

जब देश में खून बहता है तो जवाब सिर्फ आतंकियों से नहीं माँगा जाना चाहिए।  सवाल उनसे भी पूछा जाना चाहिए जिनके फैसलों से ये रास्ते खुले।  पहलगाम में 26 हिन्दू दिवंगत हुए। सवाल ये नहीं कि आतंकियों ने हमला क्यों किया, सवाल ये है कि हमने उन्हें मौका क्यों दिया ? सबसे बड़ा सवाल ये है कि  कोर्ट के आदेश से सत्ता वापसी की जल्दबाज़ी क्यों ? क्या सुप्रीम कोर्ट को पता नहीं था कि कश्मीर में सत्ता का मतलब है सुरक्षा का संतुलन बदलना ? क्या न्याय की कुर्सी पर बैठे लोग ज़मीन की हकीकत भूल बैठे?”

इसी आक्रोश को एक इंटरवियु में पूर्व सैन्य अधिकारी ने भी प्रकट किया था। एक पॉडकास्ट में लेफ्टिनेंट जनरल डीपी पांडेय (रिटायर्ड) ने कहा है, 'सुप्रीम कोर्ट के जिन जजों ने जल्द चुनाव का दबाव डाला, मेरी इच्छा है, वे सभी लोग जो अमन की आशा जैसी नॉनसेंस बातें करते हैं, उन्हें फ्लाइट में ले जाना चाहिए, उन्हें फाइव स्टार बस मुहैया करवानी चाहिए, उन्हें पहलगाम जाना चाहिए उस रिसॉर्ट में। उन्हें 15 मिनट तक वहां वॉक करना चाहिए, और उन्हें इस तरह के कुछ आंसू देखने को मिल जाए।  जो हमने इस घटना के बारे में जानकर महसूस किया है। शायद उनको ये लगे कि उन्होंने गलत फैसला लिया था।

आज सवाल सिर्फ एक है। क्या कोई इतना बड़ा फैसला—राष्ट्र की सुरक्षा के बिना ले सकता है ? “जब देश जलता है, तो जिम्मेदार सिर्फ बंदूक थामे आतंकी नहीं होता बल्कि वो भी होता है जिसने फैसला सुनाया, रास्ता खोला और खतरा बढ़ाया। हम न्यायपालिका का सम्मान करते हैं लेकिन क्या न्याय वही है जो देश को मौत के रास्ते पर छोड़ दे ? हम मौन नहीं रहेंगे। हम सवाल पूछेंगे! हम न्याय मांगेंगे क्योंकि खून बहा है भारत का और गुनहगार सिर्फ वो नहीं जो गोली चलाए बल्कि वो भी हैं जिसने फैसला सुनाया।  

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