दिल्ली के मिनी पाकिस्तान सीलमपुर का कांति नगर नाम से साफ़ पता चलता है कि कभी यह क्षेत्र हिंदू बहुल हुआ करता था. लेकिन आज ( 27 अप्रैल) 99.99% मुस्लिम आबादी ने इस इलाके की पहचान ही बदल दी है. बताया जा रहा है कि भारतीय रेलवे की लगभग 9000 वर्ग मीटर ज़मीन पर पिछले 20 वर्षों से 150 से अधिक मुस्लिम परिवारों ने अवैध कब्जा कर रखा था. खुद को "गरीब" बताने वाले इन मुस्लिमानों के घरों में एसी, कूलर, फ्रिज और डिश एंटीना जैसी तमाम ऐशोआराम की सुविधाएं मौजूद थीं. सवाल उठता है कि अगर ये इतने गरीब हैं, तो फिर ये महंगे उपकरण कहां से आए?
बता दें कि यह केवल ज़मीन कब्जाने का मामला नहीं, बल्कि एक सुनियोजित साजिश का हिस्सा लगता है. जहां सरकारी ज़मीन पर अतिक्रमण कर एक पूरी की पूरी आबादी का चेहरा बदलने की कोशिश की गई. बता दें कि सीलमपुर के कांति नगर में अवैध कब्जा हटाए जाने के बाद अब मियां पार्टी ने नया ऐलान कर दिया है 'हम दोबारा वहीं बस्ती बसाएंगे!' जबकि प्रशासन ने मौके पर भारी फोर्स तैनात कर दी है और रेलवे इस सरकारी ज़मीन को अपने महत्वपूर्ण कार्यों में इस्तेमाल करना चाहता है.
वहीं, हद तो तब हो गई जब ये मियां मोहम्मद गोरी की तरह सफेद झूठ बोलते हुए दावा कर रहे हैं कि उन्हें तो कोई नोटिस मिला ही नहीं, लेकिन रेलवे प्रशासन साफ़ कह रहा है कि दो अलग-अलग अवसरों पर बाकायदा नोटिस तामील कराए गए थे. साफ़ दिखता है कि अवैध कब्जे को जायज़ ठहराने के लिए झूठ और फरेब का नया खेल खेला जा रहा है. एक बार फिर सरकारी संपत्ति पर कब्जे की खुली चुनौती दी जा रही है.
सीलमपुर के कांति नगर को भी हल्द्वानी के वनभूलपुरा की तरह पूरी तरह हड़पने की साजिश रची जा रही थी. मुस्लिम आबादी इस इलाके को हमेशा के लिए निगलने की तैयारी में थी. अगर प्रशासन ने देर की होती, तो रेलवे की इसी ज़मीन पर हाउस टैक्स, वाटर टैक्स जैसे बिल भी बनने की तैयारी चल रही थी. इस अवैध बस्ती के भीतर नन्हे बच्चों को अरबी और कुरान की तालीम भी दी जा रही थी. साफ़ था कि कुछ वर्षों बाद यही जगह मुसलमानों के द्वारा नई उर्स घोषित कर दी जाती.. फिलहाल यह साफ़ नहीं है कि अवैध कब्जेदार भारतीय मुसलमान थे या फिर बांग्लादेशी घुसपैठिए.