हिंदुत्व के प्रणेता वीर सावरकर की जयंती पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नए संसद भवन का उद्धाटन किया. जो कई मायनों में काफी अहम है. वीर सवारकर की आज 140वीं जयंती है. सावरकर का जन्म आज ही के दिन यानी 28 मई 1883 में महाराष्ट्र जनपद के गांव भगूर में हुआ था.
सावरकर की प्रारम्भिक पढ़ाई पुणे के नामी फर्ग्यूसन कॉलेज में हुई थी. इसी दौरान उन्होंने संकेत दे दिया था कि वो अकादमिक नहीं राजनीतिक छात्र थे. मात्र 20 साल की उम्र में सावरकर ने 1903 में अपने बड़े भाई के साथ मित्र मेला नाम के एक क्रांतिकारी संगठन की स्थापना की. 1906 में ये संगठन अभिनव भारत नाम की संस्था में बदल गया. राजनीतिक विचारों के लिए भी सावरकर को फर्ग्यूसन कॉलेज से निकल दिया गया.
BA पास करने के बाद साल 1906 में ही सावरकर इंग्लैंड चले गए. वहां वो इंडिया हाउस में रहते हुए क्रांतिकारी विचारों की गतिविधियों में शामिल हो हुए. इंडिया हाउस उस समय राजनीतिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था. सावरकर ने ‘फ्री इंडिया’ सोसाइटी का निर्माण किया. जिसका मुख्य लक्ष्य भारतीय छात्रों को आजादी के लिए प्रेरित करना था. वीडी सावरकर ने साल 1907 में ‘1857 का स्वातंत्र्य समर’ नामक पुस्तक लिखनी शुरू की.
सावरकर को भारत में हिंदुत्व का प्रचार-प्रसार के लिए भी जाना जाता है. इन सबसे अलग सावरकर को भारतीय स्वंतत्रता संग्राम में विवादस्पद शख्स के तौर पर भी देखा जाता है. बहुत से लोग उनको महान क्रांतिकारी और देशभक्त मानते है. तो वहीं कुछ लोग उन्हें सांप्रादायिक शख्स के तौर पर भी देखते है. सच्चाई जो भी हो, वीडी सावरकर को हिंदू राष्ट्र और हिंदुत्व की विचारधारा का प्रचार- प्रसार का श्रेय जाता है.
13 मार्च, 1910 को सावरकर को लंदन में गिरफ्तार किया गया. मुकादमा चलाने के लिए उन्हें भारत भेजा गया. उन्हें ले जाने वाला जहाज जब मार्सिल पहुंचे तो वो वहां से भाग गए, लेकिन फ्रांसीसी पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया. 24 दिसंबर, 1910 को उन्हें अंडमान जेल की सजा सुनाई गई. जेल में सावरकर ने अनपढ़ कैदियों को शिक्षा देने की कोशिश की. गांधी जी, विट्ठल भाई पटेल तिलक जैसे महान नेताओं की मांग के चलते सावरकर को जेल से रिहा कर दिया गया.