डौंडिया खेड़ा में ख़जाने की खबर से चर्चा में आये संत शोभन सरकार का निधन, शोक में डूबे तमाम अनुयायी

डौंडिया खेड़ा में 1000 टन सोना होंने का दावा किया था, पुरातत्व विभाग ने कराई थी खुदाई, सन्त के देहावसान की खबर से भक्त शोक में डूबे

Sudarshan News
  • May 13 2020 1:12PM
इनपुट - अजयदीप सिंह (उन्नाव)

डौंडिया खेड़ा में खजाने का दावा करने के बाद चर्चा में आने वाले संत शोभन सरकार का बुधवार को निधन हो गया। उनके निधन की खबर सुनने के बाद उनके भक्त शोक में डूब गए हैं। संत शोभन सरकार का आश्रम कानपुर देहात के शिवली इलाके में पड़ता है। उनके निधन का समाचार सुनते ही उनके भक्त अंतिम दर्शन के लिए  शिवली पहुंच रहे हैं। मौके पर भारी मात्रा में भीड़ की आशंका को देखते हुए पुलिस तैनात कर दी गई है। संत शोभन सरकार का खासा प्रभाव उन्नाव, औरास के आसपास के क्षेत्र में रहा है।

कब चर्चा में आये संत शोभन सरकार - 

संत शोभन सरकार ने 2013 में फतेहपुर के रीवा नरेश रामबक्श सिंह के किले में 1000 टन सोने का खजाना दबे होने का दावा किया था। उस समय उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सरकार थी। संत शोभन सरकार ने दावा अपने सपने के आधार पर किया जिसके बाद सपा सरकार ने उस सोने पर अपना दावा जताते हुए इलाके की खुदाई शुरू करवा दी। आर्किलॉजिकल सर्वे ऑफ इंडिया की टीम भी खजाने की खोज में जुट गई थी। खजाने के कई दावेदार भी उस समय सामने आए थे। राजा के वंशजों ने उन्नाव में डेरा जमा दिया था वही ग्रामीणों ने भी उस खजाने पर अपना दावा किया था जिसके बाद केंद्र सरकार ने यह ऐलान किया कि खजाने पर सिर्फ देशवासियों का होगा लेकिन उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने उस खजाने पर राज्य सरकार का हक जताया था लेकिन काफी खुदाई के बाद वह कोई खजाना नहीं मिला था।

सन्त शोभन सरकार की पारिवारिक पृष्ठभूमि-

संत शोभन सरकार का पूरा नाम परमहंस स्वामी विरक्तानंद था उनका जन्म कानपुर देहात के शुक्लन पुरवा इलाके में हुआ था उनके पिता पंडित कैलाशनाथ तिवारी थे। संत शोभन सरकार के शिष्य बताते हैं कि महाराज ने 11 साल की उम्र में ही वैराग्य ले लिया था। स्थानीय लोगों ने बताया कि शोभन खाली वक्त में गीता और रामचरितमानस का पेड़ के नीचे बैठकर अध्ययन करते थे। हाई स्कूल की पढ़ाई पूरी करने के बाद उन्होंने घर छोड़ दिया और वह स्वामी सत्संगानद के अनुयाई बन गए। पहनने वाले कपड़ों के नाम पर वह सिर पर साफा बांधते थे और लंगोट पहनते थे।

कौन थे राजा राव रामबक्श सिंह -

राजा राव रामबक्श सिंह को भारत के पहले स्वतंत्रता संग्राम 1857 में अंग्रेजों से हार का सामना करना पड़ा था। ब्रिटिश शासकों ने उनको फांसी की सजा सुनाई और उनके किले को ध्वस्त कर दिया लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के लोग राजा के विशाल खजाने के बारे में नहीं जानते थे। जानकार मानते है कि किला ध्वस्त होने के बाद सारा खजाना उसी के लिए में दब गया।
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