छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के एनएसएस कैंप में मामले में सुदर्शन न्यूज़ की ख़बर का बड़ा असर हुआ है। दरअसल, चैनल की रिपोर्ट के बाद विश्वविद्यालय प्रशासन ने तत्परता दिखाते हुए त्वरित कार्रवाई की है। यह मामला एनएसएस कैंप में सामने आए विवाद से जुड़ा हुआ है, जिसने स्थानीय स्तर पर खासा तनाव पैदा कर दिया था।

दिलीप झा पद से हटाए गए
घटनाक्रम के बाद विश्वविद्यालय ने प्रो. दिलीप झा को एनएसएस समन्वयक के पद से हटा दिया है। उनके स्थान पर डॉ. राजेन्द्र कुमार मेहता को नया समन्वयक नियुक्त किया गया है। यह बदलाव विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से मामले की गंभीरता को दर्शाता है।
विश्वविद्यालय प्रशासन ने यह स्पष्ट किया है कि इस प्रकरण की गहन जांच की जा रही है। मामले को लेकर पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों की ओर से भी कड़ी नजर रखी जा रही है और आगामी कदमों की तैयारी की जा रही है।
क्या है पूरा मामला ?
बता दें कि, छत्तीसगढ़ के बिलासपुर में गुरु घासीदास केंद्रीय विश्वविद्यालय के एनएसएस कैंप में कुछ हिंदू छात्रों ने आरोप लगाया है कि उन्हें ईद के दिन जबरन नमाज अदा करने के लिए मजबूर किया गया। छात्रों का कहना है कि 30 मार्च को ईद के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम के दौरान उन्हें मंच पर बुलाया गया और नमाज पढ़ने के लिए कहा गया। उन्होंने दावा किया कि यह गतिविधि उनकी इच्छा के विरुद्ध थी, और इसे धार्मिक आस्था पर हस्तक्षेप माना जा रहा है।
छात्रों ने आरोप लगाया है कि यह पूरी घटना एनएसएस कोऑर्डिनेटर और प्रोग्राम ऑफिसर की जानकारी और निगरानी में हुई। उनका कहना है कि उन्होंने ही कार्यक्रम में यह गतिविधि आयोजित की और सभी छात्रों से इसमें भाग लेने को कहा।
छात्रों की संख्या में भारी अंतर
घटना को लेकर बताया गया है कि 26 मार्च से 1 अप्रैल तक चले इस एनएसएस कैंप में कुल 159 छात्र शामिल हुए थे, जिनमें से केवल 4 छात्र मुस्लिम समुदाय से थे, जबकि बाकी सभी छात्र हिंदू थे। ऐसे में यह सवाल उठ रहा है कि बाकी छात्रों को नमाज में शामिल होने के लिए क्यों कहा गया?
इस विवाद के बाद छात्रों ने कोनी थाने में जाकर इस विषय में लिखित शिकायत भी दर्ज कराई है। अब पुलिस और विश्वविद्यालय प्रशासन की ओर से इस मामले की जांच की जा रही है।
यह मामला न सिर्फ विश्वविद्यालय परिसर में बल्कि समाज में भी एक बड़ी बहस को जन्म दे रहा है। क्या किसी शैक्षणिक संस्थान में धार्मिक गतिविधियों को थोपना सही है? और क्या यह घटना धार्मिक सहिष्णुता के नाम पर व्यक्तिगत आस्था के अधिकारों का उल्लंघन है?