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7 अप्रैल: बलिदान दिवस क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी... जो मात्र 14 वर्ष की उम्र में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े और भारत छोड़ो आंदोलन में बढ़ चढ़ कर लिया था हिस्सा

आज महान क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

Ravi Rohan
  • Apr 7 2025 10:00AM
ये वो इतिहास है जिसे आज तक आप को कभी बताया नहीं गया था. उस कलम का दोष है ये जिसने नीलाम मन से और बिकी स्याही से अंग्रेज अफसरों के नामों के आगे आज तक सर लगाया है. और देश के क्रांतिकारियों को अपराधी तक लिखा स्वतंत्र भारत में इतना ही नहीं उन्होंने देश को ये जानने ही नही दिया की उनके लिए सच्चा बलिदान किस ने दिया और कब दिया है. यह देश को अनंत काल तक पीड़ा पहुंचाने वाला धोखा है. आज महान क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी का जन्म बिहार की चम्पारण जिले का फुलवरिया गांव में हुआ था. उनकी कविताओं, कहानियों और ग़जलों में जहां एक तरफ देशभक्ति और राष्ट्रीयता का स्वर है, वहीं दूसरी तरफ मानव मूल्यों और जीवन के संघर्षों की भी अभिव्यक्ति था. आम लोगों के जीवन का संघर्ष, उनके सपने और उनकी उम्मीदें रमेश चंद्र झा जी कविताओं का मुख्य स्वर है. 


क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी ने आजादी की लड़ाई में अहम भूमिका निभाई थी. वे क्रांतिकारी होने के साथ साथ दुष्यंत और दिनकर की श्रेणी के गीतकार और राष्ट्रवादी कवि भी थे. 1950 और 60 के दशक में बिहार की साहित्यिक जमीन पर ये नाम बेहद चर्चा में रहा. कलम के जादूगर कहे जाने वाले रामवृक्ष बेनीपुरी ने लिखा है, 'दिनकर के साथ बिहार में कवियों की जो नई पौध जगी, उसका अजीब हस्र हुआ.  

क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी का समय असहयोग आन्दोलन के बाद और नमक सत्याग्रह के पहले का है, जो भारतीय स्वाधीनता के महासमर की आधारशिला भी कही जाती है. इन पर ऐसे ज्वलन्त समय का प्रभाव पड़े बिना नहीं रह सका और केवल 14 वर्ष की उम्र में ही ये स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई में कूद पड़े. 1942 के भारत छोड़ो आन्दोलन में इन्होंने बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया.

जानकारी के लिए बता दें कि बिहार के चंपारण के सुगौली स्थित पुलिस स्टेशन में इनके नाम पर कई मुकदमे दर्ज किये गए जिनमें थाना डकैती कांड सबसे ज्यादा चर्चित में रहा था. तब वे रक्सौल के हजारीमल उच्च विद्यालय के छात्र थे. भारत छोड़ो आन्दोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने के लिए इन्हें 15 अगस्त 1972 को ताम्र-पत्र देकर पुरस्कृत किया गया था.

बता दें कि जेल और गिरफ़्तारी के दिनों में रमेश चंद्र झा जी ने भारतीय साहित्य का अध्ययन किया और आज़ादी के बाद अन्य कांग्रेसियों की तरह राजनीति न चुनकर कवि और लेखक बनना पसंद किया था. अपने एक काव्य संग्रह में उन्होंने लिखा है- "बहुत मजबूरियों के बाद भी जीता चला आया....शराबी सा समूची ज़िंदगी पीता चला आया / हज़ारों बार पनघट पर पलट दी उम्र की गागर....मगर अब वक़्त भी कितना गया बीता चला आया..." इसी तरह से वे एक जगह लिखते हैं- "जंगल झाड़ भरे खंडहर में सोया पांव पसार / दलित ग़ुलाम देश का मारा हारा थका फ़रार"

रमेश चंद्र झा जी ने स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद वे हिंदी, भोजपुरी और मैथिली की प्रायः सभी विधाओं पर लगातार लिखते रहे. देशभर के लगभग सभी महत्वपूर्ण प्रकाशन संस्थानों से इनकी पुस्तकों का प्रकाशन हुआ और कई प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं के लिए स्वतंत्र पत्रकारिता की.

आज महान क्रांतिकारी रमेश चंद्र झा जी को उनके बलिदान दिवस पर बारम्बार नमन करते हुए उनका गौरवगान को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है.

 

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