सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

12 मार्च: पुण्यतिथि मां भारती के अमर सपूत भगवान दास माहौर जी... जो सांडर्स जैसे क्रूर अंग्रजों को गोली मारने में चंद्रशेखर आजाद जी का किया था सहयोग

आज उस वीर बलिदानी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय समय पर जन मानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

Ravi Rohan/Sumant Kashyap
  • Mar 12 2025 8:36AM
आजादी के ठेकेदारों ने जिस वीर के बारे में नहीं बताया होगा , बिना खड्ग बिना ढाल के आजादी दिलाने की जिम्मेदारी लेने वालों ने जिसे हर पल छिपाने और सदा के लिए मिटाने की कोशिश की. उन्हीं लाखों सशत्र क्रांतिवीरों में से एक हैं मां भारती के अमर सपूत भगवान दास माहौर जी, जिनकी पुण्यतिथि है. आज उस वीर बलिदानी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय समय पर जन मानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.

भगवान दास माहौर जी का जन्म 27 फरवरी 1909 को झांसी जिले के ग्राम बड़ौनी में हुआ था जो वर्तमान समय में मध्य प्रदेश के दतिया जिले में पड़ता है. शुरूआती शिक्षा गांव में पूरी कर वे झांसी आ गये. बचपन से ही उनको देश के प्रति अनुराग था. जब वे नवीं कक्षा के विद्यार्थी थे तभी क्रांतिकारी शचींद्रनाथ बख्शी ने उन्हें क्रांतिकारी पार्टी में सम्मिलित कर लिया और फिर उनका परिचय चंद्रशेखर आजाद जी तथा सदाशिव मल्कापुरकर जी से हो गया.

वहीं, साल 1928 में माहौर जी चंद्रशेखर आजाद जी के निर्देश पर ही ग्वालियर में क्रांतिकारियों के संगठन के लिए गए. वहां उन्होंने विक्टोरिया कालेज में प्रवेश लिया. और छात्रावास में रहने लगे. यहीं पर चंद्रशेखर आजाद जी, विजय कुमार सिन्हा जी आदि क्रांतिकारी समय-समय पर उनसे मिलने आते थे. जब वहां आने वाले क्रान्तिकारियों की संख्या बहुत बढ़ने लगी, तो उन्होंने ‘चन्द्रबदनी का नाका’ मोहल्ले में एक कमरा किराये पर ले लिया.

सांडर्स जैसे क्रूर अंग्रजो को हत्या के कार्य में सहयोग हेतु भगवान दास माहौर जी को भी लाहौर बुला लिया गया. सांडर्स की हत्या के बाद लोंगों ने लाहौर छोड़ दिया. भगत सिंह जी, सुखदेव जी, विजय कुमार सिन्हा जी और बटुकेश्वर दत्त जी ग्वालियर आ गये माहौर जी ने यहां इनके छिपने की व्यवस्था की. चंद्रशेखर आजाद जी के कहने पर बम तथा गोला-बारूद आदि लेकर माहौर जी सदाशिव मलकापुरकर राव जी के साथ अकोला जा रहे थे. भुसावल पर उन्हें गाड़ी बदलनी थी. वहां आबकारी अधिकारी ने वह पेटी खुलवा ली. इस पर दोनों वहां से भागे, पर पकड़ लिए गए. जेल में डालकर जलगांव में उन पर मुकदमा चलने लगा.

माहौर जी को लाहौर केस में फसाने हेतु लाहौर केस के मुखविर जय गोपाल जी और फणीन्द्र घोष गवाही देने जलगांव आने वाले थे. इन्होंने सोचा कि इन दोनों को यदि वहां गोली मार दें, तो न रहेगा बांस न बाजेगी बांसुरी. अपने वकील द्वारा चंद्रशेखर आजाद जी को संदेश भेजा. आजाद जी ने सदाशिव जी के बड़े भाई शंकर राव जी के हाथ 20 फरवरी की शाम को भात के कटोरे में एक भरी हुई पिस्तौल भेज दी. 

यह बड़े खतरे का काम था. 21 फरवरी को उन्हें न्यायालय में गोली चलाने का अवसर नहीं मिला. जब भोजनावकाश में दोनों मुखबिर खाना खा रहे थे, तो भगवान दास जी ने गोली चला दी. पहली गोली पुलिस अधिकारी नानक शाह को लगी. दोनों मुखबिर डर कर मेज के नीचे छिप गए. इस कारण वे अगली दो गोलियों से घायल तो हुए, पर मरे नहीं. माहौर जी को आजीवन काले पानी की सजा हुई.

उन्होंने अपनी पढ़ाई भी प्रारंभ कर दी. ‘1857 के स्वाधीनता संग्राम का हिन्दी साहित्य पर प्रभाव’ विषय पर उन्होंने आगरा विश्वविद्यालय से पीएचडी की. भारत के स्वतंत्र होने के बाद बुन्देलखण्ड कालेज झांसी में हिंदी के प्राध्यापक नियुक्त हुए. वे शिक्षण कार्य तथा शोध अध्यन के साथ साथ क्रांतिवीरों की बलिदान गाथा के प्रचार प्रसार हेतु जुट गए. उन्होंने क्रांतिवीरों, चंद्रशेखर आजाद जी, सरदार भगत सिंह जी, सुखदेव जी, राजगुरु जी एवं नारायणदास खरे की बलिदान गाथा पर आधारित एक कालजयी पुस्तक "यश की धरोहर" की रचना की जिसे प्रमुख प्रकाशकों ने प्रकाशित की. इस कृतित्व में श्री सदाशिव मलकापुरकर जी एवं श्री शिव वर्मा जी उनके सह लेखक रहे.

12 मार्च 1979 में लखनऊ में चंद्रशेखर आजाद जी की प्रतिमा अनावरण के कार्यक्रम के दौरान दिल का दौरा पड़ने से उनका निधन हो गया. आज उस वीर बलिदानी की पुण्यतिथि पर सुदर्शन परिवार उन्हें कोटि कोटि नमन करता है और उनकी शौर्य गाथा को समय समय पर जन मानस के आगे लाते रहने का संकल्प भी दोहराता है.
0 Comments

ताजा समाचार