कालभैरव जयंती मार्गशीर्ष मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाई जाती है। भगवान शिव की तंत्र साधना में भैरव का विशेष महत्व है। वैसे तो भैरव भगवान शिव का उग्र रूप हैं, लेकिन कहीं-कहीं इन्हें शिव का पुत्र भी माना जाता है।ऐसी भी मान्यताएं हैं कि शिव के मार्ग पर चलने वालों को भैरव कहा जाता है। इनकी पूजा से भय और अवसाद का नाश होता है। व्यक्ति को अदम्य साहस प्राप्त होता है। भैरव की पूजा से शनि और राहु की बाधा से मुक्ति अवश्य मिलती है। इस बार कालाष्टमी 22 नवंबर यानी आज मनाई जाएगी।
काल भैरव जयंती 2024 की तिथि और पूजा मुहूर्त
22 नवंबर 2024, मार्गशीर्ष माह, कृष्ण पक्ष, अष्टमी तिथि (शुक्रवार)
अष्टमी तिथि प्रारंभ- 22 नवंबर 2024 को शाम 06:07 मिनट से शुरू
अष्टमी तिथि समाप्त- 23 नवंबर 2024 को शाम 7:56 मिनट तक
भैरव के अलग-अलग स्वरूप और विशेषता
शास्त्रों में भैरव के अनेक रूपों का वर्णन किया गया है। असितांगभैरव, रुद्रभैरव, बटुकभैरव और कालभैरव आदि। मुख्य रूप से बटुक भैरव और काल भैरव स्वरूप की पूजा और साधना सर्वोत्तम मानी जाती है। बटुक भगवान भैरव का बाल रूप हैं। इन्हें आनंद भैरव भी कहा जाता है। इस सौम्य स्वरूप की पूजा से शीघ्र फल मिलता है।काल भैरव उनका साहसिक युवा रूप है। इनकी पूजा से शत्रुओं से मुक्ति, संकटों से मुक्ति और मुकदमे में विजय मिलती है। असितांग भैरव और रुद्र भैरव की पूजा बहुत विशेष है, जिसका प्रयोग मुक्ति मोक्ष और कुंडलिनी जागरण के दौरान किया जाता है।
कैसे करें काल भैरव की उपासना?
भगवान भैरव की पूजा शाम के समय करना सर्वोत्तम है। उनके सामने एक बड़े दीपक में सरसों के तेल का दीपक जलाएं। इसके बाद प्रसाद के रूप में उड़द या दूध से बनी चीजें चढ़ाएं। विशेष कृपा के लिए उन्हें शर्बत या सिरके का भोग लगाएं। तामसिक पूजा करते समय भैरव देव को शराब भी चढ़ाई जाती है। प्रसाद चढ़ाने के बाद भगवान भैरव के मंत्रों का जाप करें।
भैरव की पूजा में सावधानियां
काल भैरव जयंती के दिन गृहस्थ लोगों को भगवान भैरव की तामसिक पूजा नहीं करनी चाहिए। आमतौर पर बटुक भैरव की ही पूजा करें। यह सौम्य पूजा है. कभी भी किसी के विनाश के लिए काल भैरव की पूजा न करें। साथ ही बिना किसी योग्य गुरु के संरक्षण के काल भैरव की पूजा करना अनुचित है।