ख़ूब लड़ी मर्दानी वो तो झांसी वाली रानी थी...सुभद्रा कुमारी चौहान की ये कविता रानी लक्ष्मीबाई की वीरता को दर्शाती है, लेकिन शायद कम ही लोग जानते होंगे उसी दौर में एक और वीरांगना हुई थीं, जिनका नाम था, झलकारी बाई. ये एक हरफ़नमौला, वीर, साहसी और इरादों की पक्की लड़की थीं. कभी किसी काम को मना नहीं करना जो सामने आया कर लेना, चाहे वो घोड़े को दौड़ाना हो या चलाना, लकड़ी काटना हो या किसी दुश्मन का सिर काटना हो.
हाथों में तलवार लेने वाली झलकारी कभी-कभी उन्हीं हाथों से मेकअप करके ख़ुद का रूप भी निखारती थीं और रानी जैसे ठाठ-बाट दिखाती थीं. इतना ही नहीं युद्ध के मैदान में रानी की ढाल बनकर खड़े रहना और एक सखी की तरह उनकी बातों को सुनना ये सारे गुण झलकारी में थे. झलकारी बाई के क़िस्से इतिहास के पन्नों में बहुत हैं, लेकिन उन्हें पढ़ने की कभी किसी ने ज़हमत नहीं की क्योंकि दौर आज का हो या 1857 का सलाम सब राजा-रानी को ही करते हैं और सहायक सिर्फ़ सहायक होता है, लेकिन झलकारी की झलक इतिहास के पन्नों से बाहर आ चुकी है.
उनकी वीरता का एक क़िस्सा है, एक बार की बात है बचपन में उन्हें लकड़ी काटने के लिए भेजा गया, जब वो कुल्हाड़ी से लकड़ी काट रही थीं, तभी उनके सामने तेंदुआ आ गया उन्होंने अपनी उसी कुल्हाड़ी से तेंदुए को भी काट दिया. रानी को झलकारी की ये अदा बहुत पसंद आई. झलकारी का जन्म 22 नवंबर 1830 को झांसी के कोली परिवार में हुआ था. इनके पिता सैनिक थे, इसलिए बचपन से ही हथियारों के साथ खेलना उनका शौक़ बन गया था.
पढ़ाई-लिखाई से ज़्यादा झलकारी शस्त्र विद्या में निपुण थीं और उस समय इसी बात पर ज़्यादा ध्यान भी दिया जाता है कि कैसे दुश्मन को मार लें और कैसे उससे बच लें. एक और क़िस्सा जो उनकी वीरता की गाथा रचता है वो ये था कि एक बार झलकारी के गांव में डाकुओं ने हमला किया, लेकन आलकारी के साहस और बुद्धिमत्ता के आगे वो डाकू टिक नहीं पाए और भाग खड़े हुए. इसके बाद झलकारी की शादी एक सैनिक के साथ हो गई.
एक बार की बात है, झलकारी बाई रानी लक्ष्मीबाई के पास उन्हें पूजा के मौके पर बधाई देने गई तो रानी हैरान रह गईं क्योंकि झलकारी, रानी लक्ष्मीबाई की हमशक्ल थीं, उस दिन से दोनों की दोस्ती शुरू हो गई.1857 की लड़ाई तो इतिहास के पन्नों पर अमर है, नहीं पता तो ये कि उस लड़ाई में झलकारी का भी बहुत ही बड़ा योगदान था. दरअसल, हुआ ये था कि रानी का क़िला अभेद था, लेकिन एक गद्दार की वजह से अंग्रेज़ों ने रानी के क़िले पर हमला कर दिया और जब रानी अंग्रेज़ों से चारों-तरफ़ से घिर गईं उस समय झलकारी ने रानी की जगह लेकर कहा, आ जाइए मैं आपकी जगह इनका समाना करती हूं.
झलकारी, रानी के भेष में लड़ते-लड़ते जनरल रोज़ के हत्थे लग गईं तो उसे लगा कि उसने रानी लक्ष्मीबाई को पकड़ लिया, तभी झलकारी हंसने लगीं तो रोज़ ने कहा कि ये लड़की पागल हो गई है, लेकिन हिंदुस्थान के ऐसे पागल अगर थोड़े और हो गए तो हमारा हिंदुस्थान में रहना मुश्किल हो जाएगा. इसके बाद 28 वर्ष की आयु में उन्हें फांसी पर लटका दिया गया था.आज वीरांगना झलकारीबाई जी जयंती पर बारम्बार नमन करते हुए उनकी यशगाथा को सदा सदा के लिए अमर रखने का संकल्प सुदर्शन परिवार लेता है
झलकारी बाई के शौर्य और साहस को सलाम करते हुए, मैथिली शरण गुप्ता ने झलकारी बाई के बारे में लिखा है:
जा कर रण में ललकारी थी,
वह तो झांसी की झलकारी थी.
गोरों से लड़ना सिखा गई,
है इतिहास में झलक रही,
वह भारत की ही नारी थी.