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Chhath Puja 2024: छठ पूजा के दौरान पढ़ें ये व्रत कथा, बरसेगी छठी मैया का कृपा

छठ पूजा का त्योहार कार्तिक माह में मनाया जाता है। यह त्यौहार सूर्य देव को समर्पित है। यह त्योहार महिलाएं अपने बच्चों की खुशी और लंबी उम्र के लिए रखती हैं।

Rashmi Singh
  • Nov 5 2024 8:04AM

छठ पर्व विशेष रूप से बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश में मनाया जाने वाला एक प्रमुख हिंदू त्योहार है। यह चार दिवसीय व्रत सूर्य देव और छठी मैया को समर्पित है। इस त्यौहार का धार्मिक और सांस्कृतिक दोनों ही दृष्टि से बहुत महत्व है। यह त्यौहार दिवाली के कुछ ही दिन बाद आता है। छठ पूजा की शुरुआत कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि को नहाय-खाय की परंपरा से होती है। यह त्यौहार 4 दिनों तक चलता है।

दूसरे दिन खरना की रस्म निभाई जाती है। छठ पूजा के तीसरे दिन यानि कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को डूबते सूर्य को अर्घ्य देकर छठ पूजा की जाती है। छठ पूजा के चौथे दिन सप्तमी तिथि को उगते सूर्य को अर्घ्य देने के साथ छठ पर्व का समापन होता है। हिंदू धर्म में उगते सूर्य को जल या अर्घ्य तो दिया ही जाता है, लेकिन छठ पूजा के तीसरे दिन डूबते सूर्य को भी अर्घ्य दिया जाता है। ऐसे में आइए जानते है कि छठ पूजा के समय व्रत कथा क्यों पढ़ना चाहिए। 

छठ पूजा व्रत कथा 

छठ पूजा से जुड़ी एक पौराणिक कथा राजा प्रियव्रत से जुड़ी है। इस कथा के अनुसार प्रियव्रत नाम का एक राजा हुआ करता था। राजा और उनकी पत्नी मालिनी हमेशा दुखी रहते थे क्योंकि उनकी कोई संतान नहीं थी। उन्होंने संतान प्राप्ति के लिए कई उपाय किए लेकिन कोई नतीजा नहीं निकला। एक बार राजा प्रियव्रत और उनकी पत्नी संतान प्राप्ति की कामना से महर्षि कश्यप के पास गये और बोले, हे महर्षि! संतान प्राप्ति के लिए कोई उपाय बताएं। उनका दुख सुन महर्षि कश्यप ने संतान प्राप्ति के लिए राजा के यहां यज्ञ का आयोजन करवाया। महर्षि कश्यप ने यज्ञ आहुति के लिए बनाई गई गई खीर को प्रियव्रत की पत्नी मालिनी को खाने के लिए कहा. राजा ने अपनी पत्नी को वो खीर खिला दी और खीर के प्रभाव से राजा की पत्नी गर्भवती हो गई। फिर 9 महीने बाद रानी को पुत्र लेकिन वह मृत पैदा हुआ। यह देख राजा और उनकी पत्नी और ज्यादा दुखी हो गए। इसके बाज राजा प्रियव्रत अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और पुत्र वियोग में प्राण त्यागने का प्रयास करने लगे।

उसी समय श्मशान में देवी प्रकट हुईं। देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि मैं ब्रह्मा की पुत्री देवसेना हूं। सृष्टि की मूल प्रकृति के छठे अंश से उत्पन्न होने के कारण मुझे षष्ठी कहा जाता है। बताओ तुम क्यों चिंतित हो। राजा ने सारी कहानी बतायी। इसके बाद षष्ठी देवी ने राजा प्रियव्रत से कहा कि यदि तुम विधिपूर्वक मेरी पूजा करोगे और दूसरों को भी मेरी पूजा करने के लिए प्रेरित करोगे तो तुम्हें अवश्य ही पुत्र की प्राप्ति होगी।

देवी के निर्देशानुसार राजा ने कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को व्रत रखा और विधि-विधान से देवी षष्ठी की पूजा की और बाकी प्रजा को भी देवी षष्ठी की पूजा करने के लिए प्रेरित किया। षष्ठी देवी की पूजा के फलस्वरूप राजा की पत्नी रानी मालिनी एक बार फिर गर्भवती हुई और 9 महीने बाद उन्हें एक पुत्र की प्राप्ति हुई। मान्यता है कि इसके बाद कार्तिक शुक्ल की षष्ठी तिथि को छठ पूजा और व्रत की शुरुआत हुई।

महाभारत में कर्ण ने की शुरुआत

महाभारत काल में माता कुंती के पुत्र कर्ण को दानी माना जाता था। कर्ण को माता कुंती के साथ-साथ सूर्य देव का पुत्र भी माना जाता था। कर्ण पर सूर्य देव की विशेष कृपा थी। कर्ण नियमित रूप से सुबह उठकर घंटों पानी में खड़े होकर सूर्य देव को अर्घ्य देते थे। सूर्यदेव की कृपा से कर्ण एक महान योद्धा बना। छठ पर्व से जुड़ी एक और कथा पुराणों में मिलती है। इस कथा के अनुसार, महाभारत काल में जब पांडव अपना सारा राजपाट जुए में हार गए थे, तब द्रौपदी ने छठ व्रत रखा था. द्रौपदी के व्रत और पूजा से प्रसन्न होकर षष्ठी देवी ने पांडवों को उनका राज्य वापस दे दिया।

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