सुदर्शन के राष्ट्रवादी पत्रकारिता को सहयोग करे

Donation

बावरी अजान से लेकर 5 केडी की रमजान तक मुलायम सिंह से जुड़ी हुई अनसुनी कहानियां

मुसलमानों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उभरे मतभेद के बाद नेताजी ने जनता दल को बाय-बाय कह दिया था और समाजवादी पार्टी का गठन किया।

रजत के.मिश्र, Twitter - rajatkmishra1
  • Oct 10 2022 4:01PM

इनपुट- अखिल तिवारी, लखनऊ

 
साल 1989- इस साल कई जगहों पर पीएसी ने मुसलमानों पर बल प्रहार किया था। मुलायम सिंह ने इस पर रोक लगाई और उनके दिलों में धीरे-धीरे बसने लगे।
 
वर्ष 1990-  मुलायम सिंह मुख्यमंत्री थे, उस समय लाखों कारसेवक बाबरी मस्जिद का ढांचा गिराने को एकत्रित थे। उन्होंने एलान कर दिया कि ‘मस्जिद पर परिंदा भी पर नहीं मार सकेगा।
 
23 नवम्बर 1990- कारसेवकों पर गोली चलवा कर मुलायम सिंह ने साफ संदेश दिया की सांप्रदायिक ताकतों को किसी भी कीमत पर हावी नहीं होने दिया जाएगा।
 
मुसलमानों से जुड़े विभिन्न मुद्दों पर उभरे मतभेद के बाद नेताजी ने जनता दल को बाय-बाय कह दिया था और समाजवादी पार्टी का गठन किया। साथ ही उन्होंने हर तबके को पूरा सम्मान दिया। ब्राह्मणों से जनेश्वर मिश्र और माता प्रसाद पांडेय, राजपूतों से मोहन सिंह और अमर सिंह समेत तक़रीबन सभी जातियों के नेता उनके साथ थे। लेकिन सबसे अहम थे उनके करीबी मो. आज़म खां… जिनकी बदौलत उन्होंने मुस्लिम राजनीति को MY (मुसलमान और यादव) के समीकरण में फ़िट किया।
 
इन सब घटनाओं के बाद मुलायम सिंह प्रदेश के अधिकतर मुस्लिमों का भरोसा और दिल जीत कर उनकी नजर में ‘मसीहा’ बन चुके थे। लोग उन्हें ‘मुल्ला मुलायम’ के नाम से आज भी पुकारते रहे। तब से लेकर आज तक सूबे का मुसलमान उनके साथ समर्पण भाव से हैं। देखना यह है कि उनके जाने के बाद उनके सुपुत्र और पार्टी के मुखिया अखिलेश यादव क्या कदम उठाएँगे। हालाँकि अखिलेश यादव भी मुलायम सिंह यादव के पदचिह्नों पर चलने की कोशिश कर रहे हैं। प्रस्तुत है साल 2017 में मुख्यमंत्री पद जाने के बाद सपा मुखिया के पहले कार्यक्रम का लाइव चित्रण… तारीख़ थी 20 जून और रमज़ान का महीना था। राजभवन चौराहे से विक्रमादित्य मार्ग की ओर जाने वाली वाहनों का डायवर्जन देखकर उधर से गुजरने वाले लोगों में गजब की उत्सुकता उमड़ रही थी।
 
लोग यह पूछना नहीं भूलते थे कि यह डायवर्जन क्यों हैं? कारण भी साफ था सत्ता में पांच साल तक लगातार रही समाजवादी पार्टी ने कोई ऐसा आयोजन नहीं किया था कि रोड को डायवर्ट करना पड़े, लिहाजा लोग या तो सवालिया निगाह से देखते थे या फिर सवाल पूछते। सीधा सा जवाब मिलता 19-विक्रमादित्य मार्ग यानी समाजवादी पार्टी के दफ्तर पर आज रोजा इफ्तार है। समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव की इफ्तार पार्टी में हजारों की संख्या में रोजेदारों ने शिरकत की थी। उसमें बड़ी संख्या में उलेमा, दानिश्वर, इमाम साहेबान, सज्जादा नशीन, यशभारती सम्मान प्राप्त, सामाजिक कारकुन, खातून और शायर भी शामिल थे। उत्तर प्रदेश से खानकाह एवं दरगाह आलिया के शज्जादा नशीन पहली बार निकल कर सामूहिक दुआ में शामिल हुए थे। दरगाह बराउन शरीफ, दरगाह किछौछा शरीफ, दरगाह पीलीभीत भी इफ्तार में शामिल हुए थे। पार्टी के आला-कमान एवं शाबिक वजीर-ए-आला अखिलेश यादव ने रोजेदारों का खैरमकदम किया और धर्मगुरुओं से हाल-चाल पूछा और तशरीफ रखने की गुजारिश भी की थी।
 
रोजे़दारों का खैरमकदम करने के लिए पूरा सपाई अमला उमड़ पड़ा था। उनके साथ दीगर दलों के आला हाकिम भी नजर आ रहे थे। राष्ट्रीय उपाध्यक्ष किरनमय नंदा, सांसद बेनी प्रसाद वर्मा के साथ कांग्रेस के प्रमोद तिवारी, सीपीआई नेता अतुल अंजान को देखकर एकजुटता का सुखद अहसास भी था। नेता विरोधी दल विधानसभा रामगोविंद चौधरी, नेता विपक्ष विधान परिषद अहमद हसन, प्रदेश अध्यक्ष नरेश उत्तम पटेल, पूर्व विधानसभा अध्यक्ष माता प्रसाद पाण्डेय के साथ-साथ पूर्व हाकिमों में बलराम यादव, राजेंद्र चौधरी, पारस नाथ यादव, राममूर्ति वर्मा, अरविन्द सिंह गोप, ओम प्रकाश सिंह, विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह, शैलेंद्र यादव ललई, कमाल अख्तर, अभिषेक मिश्र एवं नितिन अग्रवाल विधायक SRS यादव, अरविन्द सिंह, अबू आसिम आजमी, जावेद आब्दी ने शिरकत की थी। सांसद धर्मेंद्र यादव एवं नीरज शेखर भी मेहमानों का खैरमकदम करने में मशगूल थे।
 
प्रोग्राम के दरम्यान ही पूर्व केंद्रीय अल्पसंख्यक मंत्री नजमा हेपतुल्ला का एक बयान याद आ गया कि अखिलेश सरकार का मुस्लिम प्रेम सिर्फ दिखावा है। उनकी सरकार मुसलमानों के कल्याण का दम तो भरती है पर हकीकत में करती कुछ भी नहीं है। इसी बीच पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव का वह बयान भी जेहन में कौंधने लगा जब उन्होंने यह साफ मुनादी कर डाली थी कि अखिलेश से मुसलमान खफा हैं और उन्होंने मुसलमानों के लिए कुछ नहीं किया है।
 
अखिलेश यादव के नेतृत्व वाली सरकार के साल 2012 के बाद के कार्यकाल को देखते हैं तो दूध का दूध और पानी का पानी अलग हो जाता है। मुजफ्फरनगर दंगों मे तो उच्चतम न्यायालय को सरकार से पूछना पड़ा था कि सिर्फ दंगा प्रभावित मुस्लिमों को ही मुआवजा क्यों दिया जा रहा है? क्या हिंदू दंगों से पीड़ित नही हैं? सरकार को दोनों पक्षों के पीड़ितों को राहत देनी चाहिए थी। दादरी कांड मे अख़लाक़ के परिवार को 45 लाख एवं घर, प्रतापगढ़ के कुन्डा हत्याकांड मे जिया उल हक के परिवार को 50 लाख का मुआवजा जैसे अनेक उदाहरण उनके मुस्लिम प्रेम को दर्शाते हैं और उसके मुखिया अखिलेश यादव हैं।  जानकारों का कहना है कि अखिलेश जो मुसलमान प्रेम दिखा रहे थे वह उनके पिता मुलायम सिंह यादव से उन्हें विरासत में मिली थी। लेकिन आज 82 साल की उम्र में गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में जैसी ही अंतिम साँस ली। मोमिनों का सबसे बड़ा रहनुमा इस दुनिया से रुखसत हो गया।
0 Comments

संबंधि‍त ख़बरें

ताजा समाचार