पिछले कुछ समय से सोशल मीडिया पर जिस मामले ने सबसे ज्यादा तूल पकड़ा वह है कानपुर के गोविंद नगर थाने का। यहां एक इंस्पेक्टर अनुराग मिश्रा के ऊपर आरोप लगाया गया है कि उन्होंने थाने आई किसी पीड़िता से डांस करके दिखाने के लिए कहा। इस मामले में एक लड़की का वीडियो भी खूब वायरल किया गया जिसमें लड़की ने भी अपने साथ ऐसा होने की बात कही। अचानक वीडियो सोशल मीडिया में हर तरफ वायरल होने लगा और उसी के बहाने ही उत्तर प्रदेश पुलिस और योगी आदित्यनाथ के शासन पर भी सवाल उठाए जाने लगे।
लेकिन सवाल यह था कि क्या यह वीडियो सही है ? और यदि यह वीडियो सही है तो क्या इस में लगाए गए आरोप कहीं किसी भी माध्यम से या किसी भी जांच से सत्य पाए गए ? क्या सच में इंस्पेक्टर ने ऐसा करने के लिए कहा था ? क्या इस मामले में इस्पेक्टर के खिलाफ लगातार खबरें चलाने वाले सोशल प्लेटफॉर्म निष्पक्षता दिखा रहे हैं? क्या आरोपों को तथ्यों और आरंभिक प्रमाणों की कसौटी पर कसा गया है ? जब इन सबका एक साथ सामूहिक अध्ययन किया गया तब यही निकलकर सामने आया कि कहीं ना कहीं एक समूह ऐसा जरूर है जिसे कानपुर के थाना गोविंद नगर पुलिस की कार्यशैली पसंद नहीं थी और वह इस मामले को वो एकपक्षीय इतना तूल देना चाहता है कि उनके रास्ते से इंस्पेक्टर अनुराग मिश्रा हट जाए..
पुलिस बल का जनता से उनके आचरण, उनके स्वभाव उनके क्षेत्र में अपराध के ग्राफ इत्यादि मामलों पर विरोध करना और उन पर उंगली उठाना यह सिर्फ मीडिया ही नहीं बल्कि आम जनता के पास भी अधिकार है परंतु यदि विरोध करने के लिए किसी के व्यक्तिगत जीवन को दांव पर लगाया जाए अथवा किसी के खिलाफ चारित्रिक मामलों को हथियार बनाया जाए तो कहीं न कहीं वह कार्य कृत्य के बजाय कुकृत्य ही माना जाएगा। जब सुदर्शन न्यूज़ ने इस मामले की जमीनी स्तर पर पड़ताल की तब सच कुछ और ही निकल कर आया यदि पूरा सच अधिकारियों की जांच रिपोर्ट आने के बाद ही निकल कर आगे आएगा।
ध्यान देने योग्य है कि सुदर्शन न्यूज़ ने जिन बिंदुओं पर पड़ताल की और उन बिंदुओं का जो निष्कर्ष सामने आया वह निम्नलिखित है।
1- क्या ऐसा आरोप लगाने वाली लड़की के पास अपने आरोपो के समर्थन में कोई प्रमाण है ?---
जब इस बात की पड़ताल की गई तो सामने यही निकल कर आया कि ये आरोप पूरी तरह से मौखिक आधार पर लगाये गए हैं.. वर्तमान समय मे इलेक्ट्रॉनिक युग मे कैमरे युक्त फोन लगभग हर व्यक्ति के पास है.. आरोप लगाने वाली पीड़िता ने भी अपना वीडियो ऐसे ही किसी महंगे मोबाइल फोन से बनाया है... यदि इंस्पेक्टर ने डांस आदि करने का दबाव बनाया होता तो उसकी वीडियो न सही पर आडियो रिकार्डिंग जरूर ली जा सकती थी... पर अपने आरोपो के समर्थन में ऐसा कोई भी इलेक्ट्रॉनिक प्रमाण प्रस्तुत नहीं किया जा सका है।
2 - क्या गोविंद नगर थाने के थाना प्रभारी का इतिहास में कभी ऐसा मामला और रहा है?
अमूमन जब भी ऐसे आरोप किसी पर लगाए जाते हैं तो उसका अतीत पलटकर देखा जाता है और यह जानने का प्रयास किया जाता है कि क्या अतीत में इस प्रकार के किसी भी अन्य मामले में सामने वाले पर कभी आरोप लगा है? आरोप जिन इंस्पेक्टर पर लगाया गया है उनका नारी के सम्मान और सुरक्षा के क्षेत्र में बेहतरीन कैरियर रहा है। जिस थाने पर वर्तमान समय में बतौर थाना प्रभारी हैं उसी थाना क्षेत्र में महिला के विरुद्ध अपराधों में ना सिर्फ गिरावट आई है बल्कि लगभग समाप्त की ओर बढ़ चला है। इसकी मूल वजह यह है कि इस्पेक्टर मिश्रा का महिलाओं के प्रति सम्मान और उनके कार्यों को त्वरित रूप से पूरी संवेदना के साथ करने की आदत उन्हें कानपुर के ही बाकी अन्य थाना क्षेत्रों से सकारात्मक रूप से अलग करती है। उसी गोविंद नगर थाने में कई अन्य महिला स्टाफ भी है जो अपने थाना प्रभारी की मुक्त कंठ से प्रशंसा करती हैं। अपने शानदार सर्विस कैरियर में ऐसा आरोप कभी भी इस्पेक्टर मिश्रा पर नहीं लगा है इसलिए यह कहना गलत नहीं होगा कि इस्पेक्टर मिश्रा का इतिहास भी उनके पक्ष में गवाही दे रहा है।
3 - क्या इस मामले में सच्चाई से ज्यादा अफवाह उड़ाई गई ?
जी हां.. अगर इस मामले को गहराई से समझा जाए तो यही पता चलेगा कि इस वीडियो के सामने आते ही किसी भी प्रकार की जांच के निष्कर्ष के प्रतीक्षा किए बिना जिस प्रकार से संदिग्ध हैंडलो ने कोहराम मचाया, वह इसी बात की तरफ इशारा करता है कि कहीं न कहीं कोई न कोई खुन्नस गोविंद नगर थाना प्रभारी, उत्तर प्रदेश पुलिस अथवा मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के विरुद्ध कुछ लोगों की जरूर थी, जो इस मामले में बहाने के साथ किसी और रूप में निकलने लगी। सुदर्शन न्यूज़ की पड़ताल में कानपुर का ही रहने वाला एक सैयद नाम का व्यक्ति फर्जी फोटो ट्वीट करता हुआ पाया गया था जिसने बाद में अपने कृत्य के लिए बाकायदा क्षमा भी मांगी थी। इतना ही नहीं इसके अलावा भी कई अन्य ऐसे हैंडल जो कानपुर के बजाय अन्य प्रदेशों से हैं और जिन्हें जमीनी स्तर पर सच्चाई का कुछ भी नहीं पता उनके हैंडल से इस प्रकार की अनर्गल बातें वायरल होते दिखाई दी। पुलिस के खिलाफ इस मामले में अफवाह उड़ाने वालों में कई ऐसे लोग भी हैं जो अपने जीवन काल में कभी कानपुर आए भी नहीं है..
जब इन मामले में थाना प्रभारी का पक्ष जानने का प्रयास किया गया तो उन्होंने मामला उच्चाधिकारियों के पास जांच हेतु होने की बात करते हुए स्वयं को निर्दोष बताया और इसी के साथ जांच अधिकारियों पर पूरा भरोसा जताया.. इतना ही नही, इंस्पेक्टर मिश्रा ने आरोप लगाने वाली लड़की के प्रति भी एक शब्द गलत नहीं बोला जो उनकी नारी के सम्मान की दृढ़ता को दिखाता है.. महिला से जुड़े अपराधों की इस से पहले भी तमाम विवेचनाये एक कर चुके हैं इंस्पेक्टर मिश्रा और उन मामलों में कई वर्ष बीत जाने के बाद भी आज तक वो तमाम पीड़िता महिलाएं इंस्पेक्टर मिश्रा की तारीफ करती हुई पाई जाती है...
जब इस मामले में पुलिस का पक्षा जानने का प्रयास किया गया तो कुछ यूं निकल कर सामने आया --
वीडियो में दर्शायी गयी युवती खुशबू व उसकी माॅ चन्दा तथा पिता सोनू गुप्ता उर्फ बोतल द्वारा दबौली पश्चिम स्थित मकान नं0-20/3 बीएसयूपी पर अवैध रूप से कब्जा किया गया है। इसी बात को लेकर मकान मालकिन मिथलेश कुमारी से इनका विवाद है तथा दिनांक 10.03.2020 को उक्त मकान पर दोनों पक्षों ने अपने-अपने ताले डाल दिये। इसी ताले को दिनांक 07.08.2020 को सांय समय लगभग 08ः30 बजे उक्त युवती खुशबू, उसकी माॅ चन्दा व उसके भाई रवि व कृष्णा आदि तोड़ रहे थे, जिसपर बगल में रहने वाली शिवानी सिंह पत्नी सर्वेश सिंह द्वारा मना किया गया।
कई बार समझाने के बाद भी न मानने पर शिवानी सिंह उसे लेकर आयी थी और पुलिस को सूचना दी गयी। पुलिस द्वारा उक्त सभी का नियमानुसार मेडिकल कराया गया है। मेडिकल रिपोर्ट के अवलोकन से उक्त युवती खुशबू की चोटें संदिग्ध पाई गयी व स्वतः कारित करना प्रतीत हुई। तत्पश्चात् ससम्मान महिला कांसटेबल के साथ उसे उसके घर भिजवाया गया। उक्त सम्बन्ध में थाना गोविन्दनगर पर तस्करा भी रपट सं0-70 समय 23ः56 बजे पर अंकित है। आरोपी अनूप यादव मकान मालकिन मिथलेश कुमारी का भतीजा है जो उक्त विवादित मकान के रेखरेख करता है व दिनांक 10.03.2020 को विवादित मकान पर ताला आदि डालने में सक्रिय रूप से सम्मिलित था। उक्त युवती खुशबू द्वारा उसके विरूद्ध झूठा अभियोग पंजीकृत कराने तथा इस हेतु थाना स्थानीय पर दबाव बनाने के उद्देश्य से यह झूठा वीडियो सुनियोजित तरीके से वायरल किया गया है। प्र0नि0 द्वारा उक्त युवती खुशबू को उपरोक्त वर्णित घटना के अतिरिक्त कभी भी न तो बुलाया गया है, न रोका गया है और न ही अन्य कोई बात कही गयी है।
वीडियो में एक बात और गौर करने योग्य भी है कि आरोप लगाने वाली लड़की ने कहा है कि इस्पेक्टर साहब उसे बार-बार बुलाते हैं जबकि इंस्पेक्टर मिश्रा की ऐसी कोई भी कॉल डिटेल या फोन का रिकॉर्ड मौजूद नहीं है जो लड़की द्वारा लगाए गए आरोपों की पुष्टि कर सके . और थाने की सीसीटीवी में भी उसके इस प्रकार आने-जाने का कहीं से कोई रिकॉर्ड नहीं है , जिससे यह मामला कहीं ना कहीं वैसा नहीं दिख रहा जैसा दिखाने का प्रयास किया जा रहा है। कुल मिलाकर इसमें भले ही क्षणिक तौर पर नुकसान थाना गोविंद नगर के स्टाफ का हो जाए लेकिन अंतिम नुकसान समाज की शांति, सुरक्षा और सौहार्द को ही होगा क्योंकि ख़ाकी के मनोबल पर बार बार मनगढ़ंत वार किसी भी सुरक्षित समाज के लिए सही नहीं माना जा सकता है..
आतंक और अपराध से लडती पुलिस जब आखिर फर्जी और आधारहीन आरोपों का भी सामना करना पड़ता है तो ये यकीनन पुलिस से ज्यादा उस समाज के लिए घातक होता है जिसकी रक्षा वो पुलिस वाला कर रहा होता है . शारीरिक रूप से घायल जवान कई बार अपने मोर्चे पर डटा रहता है लेकिन मानसिक रूप से चोटिल रक्षको के लिए मोर्चे पर डटे रहना किसी भी रूप से सम्भव नहीं हो पाता . .ज्ञात हो कि शासन के निर्देश पर जब कानून व्यवस्था के पेंच कसे गये तब से ऐसे कई मामले सामने आये हैं जब पुलिस वालों को फर्जी और आधारहीन आरोपों का शिकार बनाया गया है .
फर्जी आरोपों की लाइन लगाए ये वो लोग हैं जो कभी कानून को ठीक से पालन करने में अपनी तौहीनी समझते थे लेकिन जब से प्रशासन ने उनको सही राह दिखाने की कोशिश की तो वो अपने असल रूप में आ गये और निशाने पर ले लिया प्रशासन को ही .उत्तर प्रदेश के योगीराज में जहाँ पुलिस बेहद चुस्त और दुरुस्त हो कर प्रशासनिक और कानूनी शासन को मजबूती के साथ पटरी पर लाना चाहती है वहीँ उसकी राह में तरह तरफ से रोड़े बिछाये जा रहे हैं . कहीं उसे पत्थरों का सामना करना पड़ रहा , कहीं उसे गोलियां झेलनी पड़ रही .. और अब इन सब बातों से पार पा जाए तो अंतिम हथियार के रूप में आधारहीन और नकली स्वरचित आरोप झेलने पर मजबूर किया जा रहा.
विकास दुबे के हाथों कई पुलिसकर्मियों के बलिदान के बाद कानपुर में उन पुलिस अधिकारियो को तैनात किया गया है जिन्हें किसी भी अनावश्यक दबाव और अवैध प्रभाव से झुकाया न ज सके . उन्हें में से एक हैं गोविंद नगर थाने के थानेदार अनुराग मिश्रा.. यहाँ ये जरूर ध्यान रखने योग्य है कि अगर कुछ तथ्यहीन खबरों को सही न माना जाय और आंकड़ो पर ध्यान दिया जाय तो इंस्पेक्टर अनुराग मिश्रा की तैनाती के बाद गोविंद नगर थाने में अपराध का ग्राफ तेजी से गिरा है .. इतना ही नहीं न्याय के लिए आम जनता की आस भी जगी है क्योकि झूठे आरोपों को भी इस थाने में परख और पकड लिया जाने लगा जो अक्सर बहुत कम जगहों पर देखने को मिलता है .. और यही बदलाव कुछ लोगों को रास नहीं आया..
स्थानीय सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार जिस मामले में ये हंगामा मचाया गया उसमे भी इंस्पेक्टर मिश्रा ने तमाम दबाव और लालच आदि को ठुकराते हुए न्याय किया था .. ये न्याय अन्याय चाह रहे उस साजिशकर्ताओ को रास नहीं आया और उसने फिर यही आरोप थाना प्रभारी पर लगा दिया.
इसीलिए आधिकारिक जांच के निष्कर्ष से पहले ही उन्हें मात्र इसलिए मानसिक प्रताड़ना दी जा रही है जिस से वो अपराधियों के विरुद्ध की जा रही अपनी कठोर कार्यवाही से विचलित हो जाएँ . लेकिन तारीफ करनी होगी पुलिस बल की जो ऐसे तमाम आरोपों को झेलते हुए भी जनता की सुरक्षा दिन में भूखे रह कर और रातों में जाग कर कर रहा है .
यहाँ प्रसंशा की पात्र वो पुलिस है जो नारी के सम्मान के अपने दायित्यो को जानते हुए इस मामले में सब कुछ सामने आने के बाद भी कोई ऐसी कार्यवाही नही की जिसे बदले की भावना कहा जा सके..लेकिन असल मे कहीं न कहीं इस छूट और नेकी का कुप्रभाव ही देखने को मिल रहा है .. अब उसी मामले को फिर से कुछ राजनैतिक विचारधारा के लोगों द्वारा उछाला जा रहा है जिसमे सीधे निशाना योगी सरकार को बनाने की साजिश रची गयी है .
बिजनौर के सिपाही कमल शुक्ला , रामपुर के सब इंस्पेक्टर जय प्रकाश , मुरादाबाद चंदौसी के चौकी इंचार्ज हरपाल सिंह , शाहजहांपुर के सिपाही, देवरिया में थानाध्यक्ष श्रवण यादव व अब कानपुर के इंस्पेक्टर मिश्रा पर इस प्रकार से आधारहीन आरोप व स्वरचित मिथ्या मामले रचने वालों पर कड़ी कार्यवाही न हुई तो निश्चित तौर पर ये समाज की शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले, आतंक और अपराध से लड़ते पुलिस बल के लिए किसी भी रूप में सार्थक परिणाम नहीं देगा और इसका असर जनता पर जरूर पड़ेगा.. अगर इसी मामले का एक दूसरा पक्ष देखा जाए तो पिछले 1 वर्ष में तमाम पुलिसकर्मियों ने विभिन्न मामलों व पीड़ाओं से आहत होकर आत्महत्या की है। ऐसे में मनोबल गिरने का असर मात्र पुलिस विभाग की छवि तक ही सीमित नहीं होता बल्कि उसका असर उस पुलिस वाले के परिवार तक भी जाता है घर में बहन, मां, बेटी व पत्नी के रूप में कई महिलाएं हुआ करती है...
रिपोर्ट-
राहुल पांडेय
सुदर्शन न्यूज़ - मुख्यालय नोएडा
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