#FactCheck ख़ाकी के मनोबल पर इतना भी वार ठीक नहीं.. क्या है हरदोई के वायरल वीडियो का सच ?
आखिर क्या है सच हरदोई के वायरल हो रहे वीडियो का ? जानिए बिंदुवार
अचानक ही सोशल मीडिया में एक खबर वायरल होने लगी कि उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ के जिला हरदोई में थाना अध्यक्ष का रिश्वत लेते वीडियो सामने आया है... इस मामले में जब पड़ताल की गई तो सामने ये आया कि किसी भी स्थापित मीडिया वर्ग ने इस खबर को प्रमुखता नही दी है बल्कि इस खबर को चोरी छिपे और अमान्य हैण्डलो द्वारा प्रचारित और कहना गलत नही होगा कि दुष्प्रचारित किया जा रहा है..
जब इस मामले की जमीनी पड़ताल की गई तो ये विषय हरदोई जिले के टड़ियावां थाने का निकला.. इस वीडियो में थानाध्यक्ष अरुणेश कुमार दिखाई दे रहे हैं और कोई उन्हें कुछ रुपये देते दिख रहा है.. इस मामले का संज्ञान उच्चाधिकारियों तक ने वायरल वीडियो के आधार पर ले लिया और जांच की बात कही जाने लगी, पर जब इस मामले की तह तक जा कर पड़ताल की गई तो थानाध्यक्ष के खिलाफ एक बड़ी साजिश की बू साफ नजर आई..
इस मामले पर गौर करने योग्य बिंदु निम्नलिखित हैं-
1- वीडियो में दिए जा रहे पैसे किसी भी हाल में ये निश्चित नही हैं कि वो रिश्वत के ही हैं..
2- वीडियो में एक आदमी अपना कैमरा चालू कर के आता है और थानेदार को पैसे दे कर चला जाता है... थानेदार व पैसा देने वाला व्यक्ति आपस मे कोई बात नही करते ... सवाल ये है कि क्या सच मे रिश्वत इतनी खामोशी से दी जाती है वो भी बिना मोल भाव के ?
3- इस मामले में मिल रही जानकारी के अनुसार थानाध्यक्ष अरुणेश ने किसी मिक्सी मशीन को खरीदने के लिए किसी को भेजा था और वो नही मिली तब सामने वाले ने थानाध्यक्ष के ही पैसे उन्हें वापस किये थे जिसकी वीडियो बना कर उसके रिश्वत होने की अफवाह उड़ा दी गई..
4- यदि ये मामला सच मे रिश्वत देने का होता और रिश्वत देने वाला व्यक्ति सच मे थानाध्यक्ष अरुणेश के खिलाफ था और पैसे देने का दिन समय सब तय था तो किसी उच्चाधिकारी अथवा एंटी करप्शन टीम की मदद क्यों नही ली गई ..
5- यदि यह मामला सच मे रिश्वत का होता तो वायरल हो रहा वीडियो सबसे पहले जिले के वरिष्ठ अधिकारियों को भेजा जाता .. पर ये सोशल मीडिया में वायरल करने का सन्देश स्पष्ट है कि लक्ष्य पर थानाध्यक्ष का सम्मान व उनकी कुर्सी है.., भले ही किसी भी झूठ के भरोसे..
6- अमूमन रिश्वत बन्द कमरे में ली जाती है वो भी पूरी सावधानी के साथ.. पर इस वीडियो में जिस प्रकार से थानाध्यक्ष ने खुले में पैसे लिए वो भी पूरी लापरवाही के साथ, उस से उनकी बात में इतना दम जरूर लगता है कि वो उनके खुद के पैसे थे जो सामान न मिलने पर उन्हें वापस किये जा रहे थे...
यहां एक उदाहरण को समझना पड़ेगा कि यदि कोई पुलिसकर्मी किसी सब्जी वाले से 100 रुपये की सब्ज़ी खरीदे और उस सब्ज़ी वाले को 500 रुपये की नोट देते हुए अपने 400 रुपये वापस ले रहा हो और उसी समय कोई वीडियो बना कर वायरल कर दे, तो क्या वो पुलिसकर्मी दोषी हो जाएगा ?
यदि ये फार्मूला सच मे स्वीकार है तो लगभग हर दिन ऐसे अनगिनत वीडियो वायरल होंगे और पुलिस के तमाम लोग हर दिन कार्यवाही के शिकार क्योंकि ऐसा आधा अधूरा वीडियो किसी का भी बनाया जा सकता है.. सिर्फ छोटे स्टाफ़ का नहीं बल्कि बड़े राजपत्रितों का भी..
सबसे खास बात ये भी गौर करने योग्य है कि स्थापित मीडिया के बजाय सामान्य हैण्डलो से वायरल हो रही इस वीडियो में कार्यवाही की मांग हो रही.. ये मांग वाले शब्द ही ये समझने के लिए काफी हैं कि बिना वादी वाले इस मामले में असामाजिक कृत्यों में संलिप्त वो विपक्ष हैं, जिनके कार्य थाना प्रभारी अरुणेश की सख्ती से चलने बन्द हो गए थे. अमूमन कार्यवाही की मांग पीड़ित करता है लेकिन यहां पीड़ित कौन है ये किसी को भी नही पता और किसी अदृश्य को न्याय दिलाने के लिए एक हैरत भरा अभियान चलाया जा रहा है जो थानाध्यक्ष के विरुद्ध स्पष्ट साजिश की तरफ इशारा कर रहा है..
यदि ऐसे मामले में थानाध्यक्ष पर उच्चाधिकारियों द्वारा कोई कार्यवाही होती है तो निश्चित तौर पर आने वाले समय में पूरे प्रदेश नहीं बल्कि पूरे देश में इस प्रकार के वीडियो की बाढ़ आ जाएगी क्योंकि लगभग हर पुलिसकर्मी घर के घरेलू सामान, साग - सब्जी इत्यादि खरीदने के लिए बाजार जाता ही है और वहां इस प्रकार पैसे का लेनदेन होता है । हर लेन-देन का वीडियो कोई पुलिसकर्मी बनाकर अपने पास अपनी सफाई के सबूत के रूप में रखे , यह अभी संभव नहीं है और इसके बाद पुलिस का अधिकतर समय अपने ही डिपार्टमेंट की जांच करने में समय यति तो होगी और अपराधियों की सीधे-सीधे मौज आएगी...
असल मे आतंक और अपराध से लडती पुलिस को जब फर्जी और आधारहीन आरोपों का भी सामना करना पड़ता है तो ये यकीनन पुलिस से ज्यादा उस समाज के लिए घातक होता है जिसकी रक्षा वो पुलिस वाला कर रहा होता है . शारीरिक रूप से घायल जवान कई बार अपने मोर्चे पर डटा रहता है लेकिन मानसिक रूप से चोटिल रक्षको के लिए मोर्चे पर डटे रहना किसी भी रूप से सम्भव नहीं हो पाता . .ज्ञात हो कि शासन के निर्देश पर जब कानून व्यवस्था के पेंच कसे गये तब से ऐसे कई मामले सामने आये हैं जब पुलिस वालों को फर्जी और आधारहीन आरोपों का शिकार बनाया गया है .
फर्जी आरोपों की लाइन लगाए ये वो लोग हैं जो कभी कानून को ठीक से पालन करने में अपनी तौहीनी समझते थे लेकिन जब से प्रशासन ने उनको सही राह दिखाने की कोशिश की तो वो अपने असल रूप में आ गये और निशाने पर ले लिया प्रशासन को ही .उत्तर प्रदेश के योगीराज में जहाँ पुलिस बेहद चुस्त और दुरुस्त हो कर प्रशासनिक और कानूनी शासन को मजबूती के साथ पटरी पर लाना चाहती है वहीँ उसकी राह में तरह तरफ से रोड़े बिछाये जा रहे हैं . कहीं उसे पत्थरों का सामना करना पड़ रहा , कहीं उसे गोलियां झेलनी पड़ रही .. और अब इन सब बातों से पार पा जाए तो अंतिम हथियार के रूप में आधारहीन और नकली स्वरचित आरोप झेलने पर मजबूर किया जा रहा.
यहाँ ये जरूर ध्यान रखने योग्य है कि अगर कुछ तथ्यहीन खबरों को सही न माना जाय और आंकड़ो पर ध्यान दिया जाय तो थानाध्यक्ष टड़ियावां अरुणेश की तैनाती के बाद टड़ियावां थाने में अपराध का ग्राफ तेजी से गिरा है .. इतना ही नहीं न्याय के लिए आम जनता की आस भी जगी है क्योकि झूठे आरोपों को भी इस थाने में परख और पकड लिया जाने लगा जो अक्सर बहुत कम जगहों पर देखने को मिलता है .. माना जा रहा है कि यही बदलाव कुछ लोगों को रास नहीं आया .
लेकिन तारीफ करनी होगी पुलिस बल की जो ऐसे तमाम आरोपों को झेलते हुए भी जनता की सुरक्षा दिन में भूखे रह कर और रातों में जाग कर कर रही है.. असल मे पूरा सोच समझ कर ऐसे विषयो से सीधे निशाना योगी सरकार को बनाने की साजिश रची गयी है . आये दिन ऐसे तमाम मामले सामने आ रहे हैं जिसमे शासन और प्रशासन के अधिकारियो को ऐसे कई झूठे और स्वरचित मामलो से न सिर्फ मानसिक रूप से प्रताड़ित किया गया है बल्कि उनके सामाजिक जीवन को भी प्रभावित किया गया है .. बिजनौर के सिपाही कमल शुक्ला , रामपुर के सब इंस्पेक्टर जय प्रकाश , मुरादाबाद चंदौसी के चौकी इंचार्ज हरपाल सिंह , शाहजहांपुर के सिपाही , देवरिया में थानाध्यक्ष श्रवण यादव व अब हरदोई में थानेदार अरुणेश पर इस प्रकार से आधारहीन आरोप व स्वरचित मिथ्या मामले रचने वालों पर कड़ी कार्यवाही न हुई तो निश्चित तौर पर ये समाज की शांति और सुरक्षा की जिम्मेदारी उठाने वाले, आतंक और अपराध से लड़ते पुलिस बल के लिए किसी भी रूप में सार्थक परिणाम नहीं देगा और इसका असर जनता पर जरूर पड़ेगा .