Fact Check- क्या सच में बाबरी पर पहला वार करने वाला कोई बलवीर बन गया था मोहम्मद आमिर ? या ये कहानी है एक बड़ी व गढ़ी साजिश ?
खूब प्रचार किया गया इस कहानी का, पर ये है उसका असल सच
जब से बाबरी ध्वंस हुआ उसके बाद देश ही नही बल्कि दुनिया का जिस प्रकार से माहौल बदला उसको हर किसी ने देखा. बिखरे हुए हिंदुओं को एक मंच मिलना शुरू हो गया और जिसको पहले साम्प्रदायिक शक्ति के नाम से बदनाम किया जाता रहा वो समाज में स्वीकार किये जाने लगे.. एक नई प्रकार की चेतना का उदय जैसा हुआ था और फिर न सिर्फ सामाजिक ताना बना बदल गया बल्कि भारत पर राज करने वाली राजनैतिक सोच भी एकदम से बदल गई.. आज उसको देखा और समझा जा सकता है..
फिलहाल जब तक साइबर युग नहीं आया था तब तक को मामला कानूनी और संवैधानिक स्वरूप में चलता रहा लेकिन जैसे ही सोशल मीडिया ने अपना प्रभाव समाज पर डाला वैसे ही एक नया नाम सामने आया और वो नाम था मोहम्मद आमिर का.. अचानक ही एक व्यक्ति को समाज के आगे पेश किया जाने लगा और बताया जाने लगा कि ये व्यक्ति कभी बलबीर सिंह नाम से हुआ करता था जिसने बाद में अपने एक दोस्त के साथ इस्लाम कबूल कर लिया और मोहम्मद आमिर बन गया.
अपने इस्लाम कबूल करने की वजह इस व्यक्ति ने बाबरी पर अपने द्वारा किये गये वार को बताया और कहा कि 1 दिसंबर 1992 को वह अयोध्या में कारसेवकों के जत्थे में शामिल हुआ था। बकौल आमिर वह बाबरी मस्जिद तोड़ने के लिए गुम्बद पर चढ़ने वाला पहला शख्स था। उसने कुदाल से गुम्बद पर कई वार किये थे.. उसने ये भी बताया कि वो बाला साहब ठाकरे की विचारधारा से बहुत प्रभावित था और उसी के चलते उसने शिवसेना ज्वाइन कर के हिंदूवादी समूहों से के साथ मिल कर कार्य करने शुरू कर दिए थे.
उसने आगे बताया है कि बाबरी ध्वंस के बाद जब वह अपने घर पहुंचा और परिवार के लोगों का रिएक्शन देखा तो उसे सदमा लग गया। घरवालों ने आमिर की हरकत का खुला विरोध किया। आमिर को भी अहसास हुआ कि उसने बेहद गलत काम कर दिया है। जबकि उसका कहना ये भी है कि इलाके में उसका खुल कर स्वागत किया गया और उसको एक हीरो की तरह बुलाया गया.. आखिरकार उसने क्षोभ में और अंदर की अपनी आवाज पर इस्लाम कबूल कर लिया और मोहम्मद आमिर बन गया.
जब सुदर्शन न्यूज ने इस पूरी कहानी के पीछे छिपे असल सच की पड़ताल की तो पता चला कि इस कहानी का कोई भी मजबूत आधार नहीं है.. इन तमाम दावों की जमीनी हकीकत जानने के लिए जब बाबरी ध्वंस में शामिल कारसेवको के पुलिस रिकार्ड तलाशे गये तो उसमे कहीं भी बलबीर सिंह का नाम नहीं दिखा जो अब मोहम्मद आमिर बन कर खुद को पहले का कारसेवक बताते हैं और बाबरी पर पहला वार करने का दावा मुंबई मिरर नाम के अख़बार से २०१७ के बाद से अब तक करते आये हैं ..
सवाल ये बनता है कि बाबरी ध्वंस में शामिल न होने का दावा कर रहे तमाम नेताओं के ऊपर जहाँ लगातार केस चल रहे और उन्हें पेशी आदि पर जाना पड़ रहा तो वही खुद को अपने मुह से बाबरी पर पहला हमला करने का दावा करने वाले के खिलाफ कहीं भी कोई केस क्यों नही दर्ज है ? क्या मात्र धर्म बदल लेने से भारत का संविधान भी सजा को माफ़ कर दिया करता है ? बलबीर सिंह उर्फ़ मोहम्मद आमिर का नाम किसी भी पुलिस रिकार्ड में अब तक प्रकाश में न आने का इशारा साफ़ है की इस कहानी में झोल जरूर है.
इसके पश्चात जब बलबीर सिंह के पैतृक गाँव की तरफ रुख किया गया तो वो हरियाणा के पानीपत में मिला.. जब उनके आस पास बलबीर के दावे की पड़ताल की गई तो पाया गया कि वो पूरा क्षेत्र आर्य समाज की विचारधारा वालों का गढ़ है जहाँ बाबरी ध्वंस से लौटे किसी भी ऐसे व्यक्ति के भव्य स्वागत की बात किसी भी बुजुर्ग को याद नहीं है..कई लोगों से और यहाँ तक कि हिंदूवादी विचारधारा के वरिष्ठो से भी जानकारी लेने पर पता चला कि बाबरी ध्वंस के बाद किसी बलबीर नाम के व्यक्ति का भव्य स्वागत किये जाने का कोई भी प्रमाण नहीं है ..
इसी के साथ एक बार और प्रकाश में आई जिसमे पता चला कि मोहम्मद आमिर बने पूर्व बलबीर सिंह के पिता शिक्षक थे.. उनका नाम दौलत राम था.. दौलतराम एक विशुद्ध गांधीवादी विचारधारा के व्यक्ति हैं जो अपनी धर्मनिरपेक्ष छवि के लिए इलाके में जाने जाते थे.. इनका बेटा बलबीर सिंह भी अपने ही पिता की विचारधारा से बचपन से प्रभावित था और कई मुस्लिम लडको के साथ बचपन से ही दोस्ती थी और उनके पिता से मिलने आने वाले मुस्लिम बुद्धिजीवियों से वो काफी प्रभावित था.
एक अन्य प्रमाण के रूप में जब बाबरी काण्ड से जुड़े कई फोटो, वीडियो आदि न सिर्फ अपनी पड़ताल बल्कि पुलिस व् एजेंसियों की पड़ताल में निकाले गये तो कहीं भी आमिर बना बलबीर किसी भी स्थान पर नहीं दिखाई दिया. उस समय इस आन्दोलन के अग्रणी लोगों में लालकृष्ण आडवानी, मुरली मनोहर जोशी , अटल बिहारी वाजपेई , साध्वी ऋतंभरा , बाला साहब ठाकरे आदि में से किसी के भी आस पास कभी भी एक भी बार बलबीर की फोटो या वीडियो नहीं दिखाई दी..
अब सवाल ये बनता है कि क्या सच में ये सम्भव है कि इस आन्दोलन में सबसे आगे रहने वाले ऐसे व्यक्ति को ये तमाम बड़ी हस्तियाँ सच में नहीं जानती रहीं होंगी ? एक फोटो जरूर गुम्बद पर चढ़े व्यक्ति की बताई जाती है लेकिन अब तक किसी भी फैक्ट चेकर आदि ने उसको सही करार नहीं दिया है.. ये पहली बार नहीं हुआ है , इस से पहले भी ऐसी कई फोटो तथ्यहीन और आधारहीन रूप से किसी अन्य की बता कर भ्रामक खबरें चलाई जा चुकी हैं जो बाद में झूठ साबित हुई थी.
एक तथ्य ये भी है की ढांचे पर उस भीड़ में वो कौन सा व्यक्ति था जो पहली कुदाल गिन रहा था जबकि आंकड़ो के हिसाब से वहां लाखों की भीड़ मौजूद थी.. उन लाखों की भीड़ में पहली कुदाल मारने का दावा मात्र एक सनसनी पैदा करने का लगता है जिसके पीछे केवल और केवल मनोवैज्ञानिक जीत हासिल करना उद्देश्य दिखाई दे रहा है.. इसी के साथ 1992 की कारसेवा में बलबीर उर्फ़ मोहम्मद आमिर के होने का प्रमाण नही मिल पाया जिसमे मुलायम सिंह ने गोलियों की बौछार अपने आदेश पर करवा कर कई कारसेवको की जान ले ली थी.. सवाल ये है कि वो २ वर्ष पहले वाली कारसेवा में क्यों नही गये थे ?
इसी के साथ अपने दिए गये इन्टरव्यू में बलबीर ने न सिर्फ शिवसेना बल्कि राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ को भी लपेटने की कोशिश की है . उनका कहना है की वो शिवसेना के एक समर्पित कार्यकर्ता थे लेकिन बराबर संघ की शाखा में भी जाया करते थे. यहाँ ये जानना बेहद जरूरी है की राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ व् शिवसेना की हिंदूवादी विचारधारा में काफी अंतर है. ये विरला मामला ही था जो मोहम्मद आमिर उर्फ़ तब के बलबीर के साथ हुआ.. जबकि असल लक्ष्य इसमें भारत के इन दो प्रमुख धर्मस्तंभों को हिंसक शिक्षा देने वाला दिखाना हो सकता है.
कुल मिला कर अगर तब के बलबीर और अब के मोहम्मद आमिर के बयानों पर गौर किया जाय तो कई तथ्य ऐसे निकल कर सामने आएंगे जो अनसुलझे मिलेंगे.. फ़िलहाल एक वर्ग विशेष द्वारा उनको लगातार चर्चा में लाने के प्रयास किये जा रहे हैं जो समाज के अन्य वर्गो में विश्वास तो नहीं पर संदेह जरूर पैदा कर रहे हैं.. उपरोक्त जांच पड़ताल के बाद इतना तो तय माना जा रहा है कि वो सब कुछ सच किसी भी हाल में नहीं है जो बताने के बजाय थोपने की कोशिश हो रही है..
गांधीवादी मानसिकता के घर का बलबीर अपने पिता के सर्वधर्म के आदर्शो को आत्मसात करने वाला आगे चल कर मुस्लिम बन गया हो ये जरूर सम्भव है लेकिन एक कट्टर हिंदूवादी छवि का व् बाबरी पर पहला वार करने वाला बलबीर उसी घटना से दुखी हो कर मुसलमान बन गया ये निनांत संदेहास्पद है क्योकि समय काल परिस्थिति में एक भी तथ्य या कड़ी ऐसी नही जुड़ पा रही है जो फैलाए जा रहे उस भ्रम को सही साबित कर पाए .. सिर्फ जुबानी आधार पर फैलाए जा रहे इस भ्रम से सतर्क रहने की भी जरूरत है।
ये भी ध्यान रखने योग्य है की इस्लाम कबूल करने के बाद अब मोहम्मद आमिर व् तब का बलबीर 100 मस्जिद के निर्माण अथवा पुनर्निर्माण में लगा हुआ है . उसके अनुसार जून 1993 में बलवीर भी सोनीपत के मौलाना कलीम सिद्दीकी से मिला जिन्होंने योगेन्द्र को इस्लाम कबूल कराया था और बलवीर भी मुसलमान बन गया। बलवीर याद कर बताता है कि उसकी बातों को सुनकर मौलाना ने सिर्फ यही इतना कहा कि वह चाहे तो सैकड़ों मस्जिदों का जीर्णोद्धार कर सकता है। बलवीर यानी अब मोहम्मद आमिर तब से इसी काम में लगा हुआ है।