जलियांवाला बाग हत्याकांड: क्या हुआ था 13 अप्रेल 1919 को?
जलियांवाला बाग नरसंहार में 391 लोगों ने अपने प्राण गवां दिए और 1200 से अधिक लोग घायल हो गए थे
भारत के पंजाब राज्य के अमृतसर शहर में स्वर्ण मंदिर के निकट स्थित जलियांवाला बाग में 13 अप्रेल सन 1919 को व्यापक नरसंहार हुआ। दरअसल, इसी साल फरवरी महीने के अंत मे अंग्रेजो द्वारा भारत मे रॉलेट बिल लाया गया था। 1919 से पहले तक ब्रिटिशों की दमनकारी नीतियों ने उनके झुठे वादों का पर्दाफाश कर दिया था। जगह-जगह सरकार विरोधी आवाजे उठ रही थी। इन आवाजो को दबाने के लिए अंग्रेजों ने 1919 का अराजक और क्रांतिकारी अपराध (जिसे रॉकेट एक्ट के नाम से जाना जाता हैं) को कानून का रूप दे दिया गया। अंग्रेज नही चाहते थे कि 1857 जैसा व्यापक आंदोलन भारत ने दोहराया जाए। इसके एक्ट के तरह सरकार की शक्तियां और अधिक बढ़ गई थी, जिसके अंतर्गत किसी भी भारतीय को बिना कारण के या शक के बुनियाद पर गिरफ्तार करने और बिना मुकदमे के अनंतकाल तक जेल में रखने के प्रावधान थे। इस एक्ट के क्रूर प्रावधानों के वजह से भारत मे इसका कड़ा विरोध हुआ। इस विरोध की शुरुआत पंजाब से हुई। राज्य में कई जगह सरकार विरोधी सभाए हुई और अमृतसर, लाहौर व जलंधर जैसे शहरों में हड़ताल किये गए। 9 अप्रेल, रामनवमी के अवसर पर बड़े स्तर में मार्च निकाला गया। इसमें हिन्दू मुस्लिम ने मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाई। हिन्दू, मुस्लिम एकता और विरोध के उठ रहे स्वर ने अंग्रेजों को हिला दिया।
इन आंदोलनों का नेतृत्व करने वाले स्वतंत्रता समर्थक नेताओं में डॉ सैफ़ुद्दीन किचलू और डॉ सत्यपाल को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसके बाद भीड़ उग्र हो गयी। दोनों तरफ से लाठी डंडे गोलियां चली, आगजनी हुई और तोड़-फोड़ भी हुआ। जिसके बाद सरकार द्वारा जालंधर के ब्रिगेडियर जनरल रेगीनाल्ड को आदेश दिया गया कि वे अमृतसर के कानून व्यवस्था को संभाले, हिंसक घटनाओं को रोके और सब सामान्य करे। जिसके बाद जनरल डायर जालंधर से अमृतसर पहुँच गया। वही दूसरी तरफ, अपने प्रिय नेताओं की गिरफ्तारी और रॉलेट कानून के विरोध में उस साल 13 अप्रैल को बैसाखी का पवन दिन पर आम लोगों की भीड़ ने जलियांवाला बाग में अंग्रेजों के खिलाफ सभा करने का फैसला किया।13 अप्रेल को शाम में लोग जलियांवाला बाग में जुटने लगे। इस बाग में दो दरवाजे थे। जनरल डायर में अपनी दमनकारी मानसिकता के वजह से एक तरफ के दरवाजे को बंद करवाकर, दूसरे दरवाजे पर खुद अपने सैनिकों के साथ खड़ा हो गया। बिना किसी कारण व पूर्व सूचना के डायर ने अपने सैनिकों को भीड़ पर गोलियां चलाने का आदेश दे दिया। इस आदेश में बिना रुके करीब 10 मिनट तक मासूमों पर गोलियां चलती रही। सरकारी आकड़ो के अनुसार, इस नरसंहार में 391 लोगों ने अपने प्राण गवां दिए और 1200 से अधिक लोग घायल हो गए थे। कुछ जानकारों के अनुसार ये संख्या और अधिक थी। गोलीबारी के दौरान लोग अपनी जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे थे। कई लोग बाग में स्थित कुएं में कूद गए। इस क्रूरता को आज भी जलियांवाला बाग में महसूस किया जा सकता है।