भारत, मध्यप्रदेश
इंदौर-कोरोना वायरस (कोविड-19) संक्रमण से मुक्त होने वाले मरीज प्लाज्मा डोनेट करने के लिए मेडिकल कॉलेज आ रहे हैं लेकिन उनमें एंटीबॉडी नहीं बनी। अकेले अरबिंदो कोविड अस्पताल में ही ऐसे 12 मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें एंटीबॉडी ही नहीं बनी। बीमारी से ठीक होने के 14 दिन बाद किसी व्यक्ति के शरीर में एंटीबॉडी बन जाती है लेकिन इन मामलों में मध्यम लक्षणों (माइल्ड) के चलते भर्ती होने के बावजूद मरीज में एंटीबॉडी टेस्ट निगेटिव आया है। इससे इस आशंका को भी बल मिल रहा है कि पॉजिटिव होने के बाद भी एंटीबॉडी क्यों नहीं बन रही? कहीं मरीज में एंटीबॉडी जल्द ही गायब तो नहीं हो रही।
डॉक्टरों का मानना है कि प्लाज्मा में दो तरह के लिंफोसाइट होते हैं। बी-सेल यानी बोनमैरो सेल और टी-सेल यानी थाइमस सेल। बी-सेल एक तरह का प्रोटीन होता है जो एंटीबॉडी बनाता है। जिन लोगों में एंटीबॉडी नहीं बनी है, उनकी बी-सेल इम्युनिटी अच्छी नहीं थी। इसका मतलब यह है कि सी-सेल इम्युनिटी के कारण वे ठीक हो गए। अब उनमें यह डर बन रहा है कि कहीं वे दोबारा संक्रमित न हो जाएं। बीमारी से मुक्त होने वाले करीब 10 प्रतिशत लोगों में एंटीबॉडी नहीं मिल रही है।