आंध्र प्रदेश के प्रसिद्ध श्री तिरुपति मंदिर में बुधवार देर रात एक गंभीर हादसा हुआ। वैकुंठ द्वार दर्शन के लिए लाइन में लगी भीड़ के बीच भगदड़ मचने से छह लोगों की मौत हो गई और 40 लोग घायल हो गए। शुक्रवार से शुरू होने वाले 10 दिवसीय विशेष वैकुंठ द्वार दर्शन के लिए मंदिर प्रशासन ने टिकट वितरण की व्यवस्था की थी।
इसके लिए 91 काउंटर खोले गए थे और लगभग 4,000 श्रद्धालु कतार में थे। इसी दौरान, एक महिला बेहोश हो गई, जिसे उपचार के लिए गेट से बाहर निकाला गया। जैसे ही यह घटना हुई, अन्य श्रद्धालु भीड़ में घुसने लगे, जिससे भगदड़ जैसी स्थिति उत्पन्न हो गई। इस हादसे में महिला सहित अन्य लोग भी घायल हुए, जिनमें से छह की मौत हो गई।
वैकुंठ द्वार दर्शन की शुरुआत
मंदिर प्रशासन के अनुसार, वैकुंठ द्वार दर्शन 10 जनवरी से शुरू होने वाला था। तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम (TTD) के कार्यकारी अधिकारी, जे श्यामला राव ने बताया था कि इस दौरान 10 से 19 जनवरी तक दर्शन के लिए भक्तों की भारी संख्या आने की संभावना थी। मंदिर के नियम के अनुसार, सुबह 4:30 बजे से प्रोटोकॉल दर्शन शुरू होते हैं, इसके बाद सुबह 8 बजे से सामान्य दर्शन की व्यवस्था होती है।
तिरुपति मंदिर का इतिहास
तिरुपति मंदिर, जो आंध्र प्रदेश के सेशाचलम पर्वत पर स्थित है, भारत के सबसे प्रसिद्ध और अमीर मंदिरों में शामिल है। यह भगवान वेंकटेश्वर का मंदिर है, जिसका निर्माण राजा तोंडमन ने करवाया था। इस मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा 11वीं सदी में रामानुजाचार्य ने की थी।
तिरुपति मंदिर की मान्यता
इस मंदिर से जुड़ी मान्यता के अनुसार, भगवान वेंकटेश्वर ने धन के देवता कुबेर से कर्ज लिया था, जो अब भी उनके ऊपर है। श्रद्धालु इस कर्ज के ब्याज का भुगतान करने के लिए दान करते हैं। हर साल मंदिर को लगभग एक टन सोना दान में मिलता है। तिरुपति मंदिर को सात पहाड़ियों पर स्थित माना जाता है, जिनमें से व्यंकटाद्रि पर भगवान विष्णु विराजित हैं। इसे व्यंकटेश्वर के नाम से जाना जाता है। यहां विशेष रूप से शुक्रवार को भगवान की पूरी मूर्ति के दर्शन होते हैं, जो केवल अभिषेक के समय होते हैं।
भगवान ने दिए साक्षात दर्शन
यहां भगवान बालाजी के अलावा अन्य कई धार्मिक स्थल भी हैं, जैसे आकाश गंगा, पापनाशक तीर्थ, वैकुंठ तीर्थ, और तिरुच्चानूर। इन स्थानों से भगवान विष्णु की लीलाओं जुड़ी हुई हैं। कहा जाता है कि भगवान बालाजी ने रामानुजाचार्य को यहीं पर साक्षात दर्शन दिए थे, जो उनके जीवन का सबसे महत्वपूर्ण पल था।