इनपुट-रोहित बाजपेई, लखनऊ
लखनऊ मर्दापुर ग्रीन सिटी में शुक्रवार को अवैध गैस गोदाम में हुए भीषण ब्लास्ट ने प्रशासन और सुरक्षा व्यवस्था की पोल खोलकर रख दी है। गैस कटिंग के दौरान हुए इस हादसे में करीब आधा दर्जन लोग गंभीर रूप से घायल हो गए।
घटना के तुरंत बाद पुलिस और दमकल विभाग की गाड़ियां मौके पर पहुंचीं, घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया और इलाके को घेराबंदी कर ‘सुरक्षित’ घोषित कर दिया गया। लेकिन असली सवाल अब भी बना हुआ है l यह हादसा हुआ ही क्यों और इसमें किसकी जवाबदेही है l शाम के समय हुए इस धमाके की गूंज ने पूरे इलाके को दहला दिया। घटना के दौरान गोदाम में गैस कटिंग का काम चल रहा था।
यह गोदाम अवैध रूप से संचालित था। सुरक्षा के नाम पर कुछ नहीं था। किसी प्रकार की निगरानी और नियमों का पालन नहीं किया गया था। धमाके के बाद घायलों को अस्पताल पहुंचाया गया। बता दें यह पहला मामला नहीं है जब अवैध गैस गोदामों की खबरें आई हैं। रिहायशी इलाके में चल रहे इन गैस गोदामों की जानकारी प्रशासन को होने के बावजूद भी इन्हें बंद क्यों नहीं कराया गया। लेकिन पुलिस और संबंधित विभाग ने इसे गंभीरता से लेना जरूरी नहीं समझा।
अब इस धमाके के बाद यह सवाल उठना लाजमी है कि क्या किसी और हादसे का इंतजार किया जा रहा था? दुबग्गा का यह अवैध गैस गोदाम न सिर्फ गैरकानूनी था, बल्कि सुरक्षा मानकों की धज्जियां उड़ाते हुए एक हादसे का इंतजार कर रहा था। यहां काम करने वाले कर्मचारियों को किसी प्रकार का प्रशिक्षण नहीं दिया गया। फायर सेफ्टी और इमरजेंसी प्रोटोकॉल जैसी बातें शायद किताबों में ही रह गईं। अधिकारियों और स्थानीय पुलिस की चुप्पी इस स्थिति को और भी गंभीर बनाती है। अवैध गैस गोदाम चलाने के पीछे की कहानी में भ्रष्टाचार का एक गहरा साया नजर आता है। स्थानीय अधिकारियों की आंखों के नीचे ऐसे गोदाम बिना किसी रोक-टोक के चलते रहते हैं। नियमित निरीक्षण की प्रक्रिया महज एक औपचारिकता बनकर रह गई है। सिस्टम का हाल देख ऐसा लगता है जैसे जनता की जान की कीमत कुछ भी नहीं है। धमाके के बाद घायलों के परिवार अस्पताल पहुंचे परिवारों का कहना है कि इस हादसे से टाला जा सकता था लेकिन हमारी शिकायतें बार-बार नजरअंदाज की गईं l