एक हजार साल बाद फिर से खोजे गए मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग के पवित्र अवशेषों के प्रति अपनी श्रद्धा अर्पित करने के लिए 10,000 से अधिक भक्त नई दिल्ली के चिन्मय मिशन में आए। यह दुर्लभ और ऐतिहासिक घटना जीवन के सभी क्षेत्रों के लोगों को आकर्षित करती है, जो शहर में अंतिम दर्शन करने के लिए उत्सुक थे।
इस अवसर पर राष्ट्रीय पहलवान संग्राम सिंह और दिल्ली सरकार के माननीय कैबिनेट मंत्री पर्वेश साहिब सिंह ने भी दर्शन किए।
पिछले रविवार को इन पवित्र अवशेषों का अनावरण करने वाले विश्व प्रसिद्ध मानवतावादी और आध्यात्मिक गुरु, गुरुदेव श्री श्री रविशंकर जी ने मीडिया को संबोधित करते हुए इस ऐतिहासिक क्षण का गूढ़ महत्व साझा किया। “शिव के पाँच कृत्य होते हैं - सृजन, पालन, परिवर्तन, आशीर्वाद और तिरोभाव (छिपना)। 1000 वर्षों तक छिपे रहने के बाद, अब शिव स्वयं प्रकट हुए हैं। इन पवित्र ज्योतिर्लिंगों के रूप में उनकी उपस्थिति यह दर्शाती है कि शिव अविनाशी हैं। वह शाश्वत रूप से विद्यमान हैं।“
आगे की योजनाओं पर बात करते हुए, गुरुदेव ने बताया कि आध्यात्मिक गुरुओं और अधिकारियों से विचार-विमर्श के बाद, इन अवशेषों की पुनः प्रतिष्ठा की योजना बनाई जाएगी। उन्होंने कहा, “रामेश्वर से सोमनाथ की यात्रा निकाली जाएगी, जिससे इन पवित्र अवशेषों को उनके उचित स्थान तक पहुँचाया जाएगा।“
पवित्र अवशेषों की कहानी
मूल सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, जो सबसे प्राचीन और शक्तिशाली ज्योतिर्लिंगों में से एक था, न केवल भक्ति का केंद्र था बल्कि अद्भुत आध्यात्मिक और वैज्ञानिक रहस्यों से भी जुड़ा था। ऐतिहासिक विवरणों के अनुसार, यह ज्योतिर्लिंग जमीन से दो फीट ऊपर हवा में स्थापित था। 2007 में किए गए एक भू-वैज्ञानिक अध्ययन में पाया गया कि इन अवशेषों में असाधारण चुंबकीय गुण हैं, जिसका चुंबकीय गुण उसके केंद्र में है। वैज्ञानिकों ने यह भी पाया कि इन अवशेषों में ऐसे गुण थे, जो किसी ज्ञात पदार्थ से मेल नहीं खाते।
1026 ईस्वी में, महमूद ग़ज़नवी ने सोमनाथ मंदिर पर आक्रमण कर मंदिर और ज्योतिर्लिंग को तोड दिया। लेकिन इस पवित्र धरोहर को बचाने के लिए, अग्निहोत्री ब्राह्मणों के एक समूह ने गुप्त रूप से इन अवशेषों को तमिलनाडु पहुँचाया। इन खंडित टुकड़ों को छोटे शिवलिंगों का रूप देकर पीढ़ियों तक पूजा की गई।
समय के साथ, ये पवित्र अवशेष अग्निहोत्री ब्राह्मण पंडित सीताराम शास्त्री के परिवार की सुरक्षा में रहे। वर्तमान कांची शंकराचार्य जी के निर्देशानुसार, शास्त्री जी को यह संदेश दिया गयाः “आप स्वयं इन अवशेषों को गुरुदेव श्री श्री रविशंकर के पास बेंगलुरु लेकर जाएं। वे सुनिश्चित करेंगे कि इन्हें सही स्थान पर प्रतिष्ठित किया जाए।“
गुरुदेव ने इस अवसर पर भारत में उठ रही एक नई आध्यात्मिक लहर के बारे में भी बात की। उन्होंने कहा, “देश में एक महान आध्यात्मिक जागरण हो रहा है। केदारनाथ, काशी विश्वनाथ, सोमनाथ और महाकाल जैसे पवित्र स्थलों को पुनर्जीवित किया जा रहा है। हमारी आध्यात्मिक विरासत के प्रति नया उत्साह और गर्व जाग रहा है, और लोगों की भक्ति पहले से अधिक गहरी हो रही है।“
गुरुदेव ने इस पुनर्जागरण पर जोर देते हुए कहा कि भारत के आध्यात्मिक स्थल केवल पूजा के स्थान ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और आर्थिक विकास के केंद्र भी हैं। केदारनाथ, काशी विश्वनाथ और महाकाल कॉरिडोर के पुनर्निर्माण ने न केवल आगंतुकों की संख्या बढ़ाई, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी सशक्त बनाया, जिससे लाखों श्रद्धालु इन तीर्थ स्थलों पर आने लगे।
वैश्विक स्तर पर आध्यात्मिक नेतृत्व का प्रभाव
इसी सप्ताह, दिल्ली की माननीय मुख्यमंत्री श्रीमती रेखा गुप्ता ने गुरुदेव के नेतृत्व में आर्ट ऑफ लिविंग के वैश्विक प्रभाव को स्वीकार करते हुए कहाः “आपके माध्यम से, लाखों लोग यह देख रहे हैं कि ’आर्ट ऑफ लिविंग’ कैसे पूरी दुनिया में ’वसुधैव कुटुंबकम’ (एक विश्व, एक परिवार) की भावना को जीवंत कर रहा है। यदि हमें एक सार्थक सामाजिक जीवन जीना है, तो हमारे जीवन में ’आर्ट ऑफ लिविंग’ की शिक्षा आवश्यक है।“